तेनी सन्मुख थईने तेने पर्यायमां उल्लसाव.
एकांतनित्यपणुं ज छे ने अनित्यपणुं नथी–एम अज्ञानी लोको माने छे.
पण चैतन्यतत्त्व नित्य–अनित्य स्वरूप छे, ते चेतनस्वभावे परिणमीने
जाणवानी क्रिया करनार छे. जो जाणवानी क्रिया न करे तो आत्मा जड थई
जाय. जाणवानी क्रिया जेनामां होय ते ज चेतन छे. जाणवारूप
परिणमवानी क्रिया (अनित्यता) अचेतनमां जे माने छे ते तो चेतनने
अचेतन माने छे ने अचेतनने चेतन माने छे. आ एकला सांख्यनी वात
नथी, पण जेनो आवो अभिप्राय छे तेओ बधा अज्ञानी छे.
तेनी पर्याय जुदा नथी. अनित्यपर्याय पण आत्मानो एक स्वभाव छे.
चेतननी क्रियारूप जे अनित्यपर्याय छे ते कांई जडप्रकृतिनो धर्म नथी, ते
तो चेतन आत्मानो धर्म छे.–आवा आत्माने जाणे ते मोक्षने पामे. मोक्ष
पण पर्याय छे. पर्यायने ज न माने तेने मोक्ष केवो?
ने ते जड–चेतनने भिन्न जाणतो थको, पर्यायने पोताना चेतनस्वभावमां
एकाग्र करीने मोक्षने साधे छे; बीजा जीवो मोक्षने साधता नथी.
भगवाननेय होय छे. पर्यायमां रागादि अशुद्धभावो ते उपाधि छे, ने तेनो
नाश थई शके छे; तेनो नाश थवा छतां आत्मा तेना वगर पण जीवी शके
छे. पण पोतानी शुद्धपर्याय वगरनो आत्मा होय नहि.