Atmadharma magazine - Ank 367
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : वैशाख : २५००
अपूर्व मोक्षसुखनो तने स्वाद आवशे. अंदर आनंदनो दरियो भर्यो छे,
तेनी सन्मुख थईने तेने पर्यायमां उल्लसाव.
७१. (मोक्षप्राभृत : गा. १५८) अज्ञानी (सांख्यमती वगेरे) एकांत ध्रुववस्तु
माने छे, ने जाणवानी क्रिया, परिणमन वगेरेने मानता नथी. आत्मामां
एकांतनित्यपणुं ज छे ने अनित्यपणुं नथी–एम अज्ञानी लोको माने छे.
पण चैतन्यतत्त्व नित्य–अनित्य स्वरूप छे, ते चेतनस्वभावे परिणमीने
जाणवानी क्रिया करनार छे. जो जाणवानी क्रिया न करे तो आत्मा जड थई
जाय. जाणवानी क्रिया जेनामां होय ते ज चेतन छे. जाणवारूप
परिणमवानी क्रिया (अनित्यता) अचेतनमां जे माने छे ते तो चेतनने
अचेतन माने छे ने अचेतनने चेतन माने छे. आ एकला सांख्यनी वात
नथी, पण जेनो आवो अभिप्राय छे तेओ बधा अज्ञानी छे.
७२. आत्माने वळी पर्याय होय? आत्मामां अनित्यपणुं होय? एम अज्ञानी
शंका करे छे. भाई, ज्ञानपर्याय वगरनो आत्मा होय नहीं, आत्मा अने
तेनी पर्याय जुदा नथी. अनित्यपर्याय पण आत्मानो एक स्वभाव छे.
चेतननी क्रियारूप जे अनित्यपर्याय छे ते कांई जडप्रकृतिनो धर्म नथी, ते
तो चेतन आत्मानो धर्म छे.–आवा आत्माने जाणे ते मोक्षने पामे. मोक्ष
पण पर्याय छे. पर्यायने ज न माने तेने मोक्ष केवो?
७३. जे चेतनने चेतन जाणे, ने अचेतनने अचेतन जाणे, चेतनना गुण–
पर्यायोने चेतनमां माने, जडना गुण–पर्यायोने जडमां माने, ते ज्ञानी छे;
ने ते जड–चेतनने भिन्न जाणतो थको, पर्यायने पोताना चेतनस्वभावमां
एकाग्र करीने मोक्षने साधे छे; बीजा जीवो मोक्षने साधता नथी.
७४. आत्मामां पर्याय होय ज नहि–एम नथी; अथवा पर्याय ते उपाधि छे–
एम पण नथी. शुद्ध पर्याय तो आत्मानुं स्वरूप छे, ने ते तो सिद्ध
भगवाननेय होय छे. पर्यायमां रागादि अशुद्धभावो ते उपाधि छे, ने तेनो
नाश थई शके छे; तेनो नाश थवा छतां आत्मा तेना वगर पण जीवी शके
छे. पण पोतानी शुद्धपर्याय वगरनो आत्मा होय नहि.
७५. ज्ञानी तो पोतानी ज्ञानपर्यायने ज्ञानमां ज एकाग्र करीने, आनंदनो
अनुभव