Atmadharma magazine - Ank 367
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २५०० आत्मधर्म : ३५ :
करतो करतो मोक्ष पामे छे, एटले सम्यग्ज्ञान अने वीतरागचारित्र वडे ज मोक्ष
पमाय छे, चारित्र वगर कोई जीवो मोक्ष पामता नथी.
७६. शुद्धोपयोगमां लीनतारूप तप ते मोक्षनुं उत्कृष्ट साधन छे. तीर्थंकर भगवंतो ते
भवे सिद्धपद पामे छे–ते वात ध्रुवपणे निश्चित छे, तेओ मति–श्रुतअवधिज्ञान
सहित छे तोपण चारित्रदशा प्रगट करीने ज्यारे चैतन्यतत्त्वमां लीन थाय छे
त्यारे ज मोक्ष पामे छे. चारित्रदशा वगर एकला ज्ञानथी तीर्थंकरो पण मोक्ष
पामता नथी. आ रीते मोक्षनुं कारण सम्यग्दर्शन ज्ञान–चारित्र छे.
७७. हे जीव! तुं प्रतिकूळता वच्चे प्रयत्नवडे आत्मानी भावना भावजे. चैतन्यनी
शांतिना वेदन पासे बहारनी सगवडतामां धर्मीने जराय सुख भासतुं नथी,
एटले सगवड टळीने प्रतिकूळता आवे तोपण आत्मानी शांति छूटती नथी;
ज्ञानभावना तेने अनुकूळता के प्रतिकूळता वखते हाजर ज रहे छे, एटले
अनुकूळतामां ते मुर्छाता नथी ने प्रतिकूळताथी ते मुंझाता नथी.
७८. अहो, चैतन्यनी भावनामां जे सुख छे ते सुख बहारनी कोई सगवडमां नथी.
माटे बहारना परिषह पण आनंदथी सहन करीने तुं तारी ज्ञानभावनामां द्रढ
रहेजे. देहमां पीडा थवानो प्रसंग आवे, योग्य आहार–पाणी न मळे, देहमां
बळतरानो पार न होय, बहारमां निंदाने अपमान थता होय एवा टाणे पण
प्रयत्न वडे तुं तारी ज्ञानभावनामां मस्त रहेजे; एकली वात करीने अटकीश
नहि, ज्ञानने आत्मानी पर्यायमां एवुं परिणमावी देजे के कोई पण प्रसंगमां ते
छूटे नहीं, ने गमे तेवी प्रतिकूळतामां पण व्याकुळता थाय नहीं.
७९. अहा, चैतन्यतत्त्वनी भावनामां जे शांति छे तेनी शी वात! एमां बहारनी
प्रतिकूळता के अनुकूळता शुं करे? आवा चैतन्यतत्त्वने भावनार जीव जगत
प्रत्येःउदासीन होय छे. आवा पराक्रमी जीवो अंदरना उग्र ध्यान वडे सुखना
अनुभवपूर्वक मोक्षने साधे छे. माटे मुमुक्षुओने तीव्र प्रयत्नपूर्वक आत्मभावना
करवानो उपदेश छे.
८०. समयसार १४ मा कळशमां कह्युं के आत्माना शुद्ध स्वरूपनो अनुभव ते