Atmadharma magazine - Ank 368
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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(फरीने वधु एकवार)
१. सौ साधर्मीने सरखा गणीने बधा साथे हळीमळीने रहेवुं जोईए.
२. हुं मोटो ने बीजा नाना–एम कोईनो तिरस्कार न करवो जोईए.
३. कोई पैसा वधारे आपे के ओछा आपे–ते उपरथी माप न करवुं
जोईए, पण खानदानीथी ने गुणथी धर्म शोभे–तेम सौए वर्तवुं
जोईए.
४. मुमुक्षु–मुमुक्षुमां एकबीजाने देखीने हृदयथी प्रेम आववो जोईए.
५. भाई, अत्यारे आ वात महाभाग्ये अहीं आवी गई छे. आ
कोई साधारण वात नथी. माटे सौए संपथी, धर्मनी शोभा वधे
ने पोतानुं कल्याण थाय तेम करवुं जोईए.
६. एकबीजानी निंदामां कोईए उतरवुं न जोईए, एकबीजाने कांई
फेरफार होय तो जतुं करवुं जोईए. नजीवी बाबतमां विखवाद
उभो थाय–ते मुमुक्षुने शोभे नहि.
७. सौए मळीने रोज एक कलाक नियमित ज्ञाननो अभ्यास,
शास्त्रवांचन करवुं जोईए. ज्ञानना अभ्यास वगर सत्यना
संस्कार टकशे नहि.
८. अरे, तीर्थंकरदेवे कहेलो आवो आत्मा समजवा जे तैयार थयो
एने बहारमां नाना–मोटानां मान–अपमान शुं?
९. आ तो पोते पोताना आत्मानुं हित करी लेवानी वात छे.
१०. संसारथी तो जाणे हुं मरी गयो छुं–एम तेनाथी उदासीन थईने
आत्मानुं कल्याण केम थाय ते करवानुं छे.
[सुंदर आत्माने साधवा माटे आ शिखामण सौने उपयोगी छे.]