अज्ञानी रागादिरूपे ज पोतानेअनुभवतो थको तेनो कर्ता थाय छे.
ज्ञानी अने अज्ञानीना परिणाममां आवो जे मोटो भेद छे
अशुद्धभावोनुं कर्तृत्व छोडीने, शुद्ध ज्ञानपरिणमन वडे मोक्षमार्गने
साधे छे. आ वात समयसारना कळश ९५–९६–९७ मां आचार्यदेवे
सुंदर रीते समजावी छे. तेनां प्रवचन आप अहीं वांचशो. (–सं.)
नथी; ज्ञानस्वरूप आत्मा कर्ता ने विकल्प तेनुं कर्म–एम अशुद्ध रागादिभावो साथे
अज्ञानीने कर्ताकर्मपणुं छे. जेने रागथी भिन्न चैतन्यभावनुं भान नथी, वेदन नथी, ने
चैतन्यथी विरुद्ध रागादि अशुद्धभावोरूपे पोताने अनुभवे छे, ते जीवने अशुद्धभावोनुं
कर्तापणुं छे. एटले मिथ्याद्रष्टि जीव ज ते रागादि अशुद्धतानो कर्ता छे, ज्ञानभावमां
रागादिनुं कर्तापणुं नथी; अने ते मिथ्याद्रष्टिनो जे अशुद्धभाव छे ते ज तेनुं कर्म छे,
बीजुं कोई (–शरीरादिनी जडक्रिया वगेरे) तेनुं कर्म नथी. आ कर्ता–कर्मनी मर्यादा छे.
जड साथे तो कर्ताकर्मपणुं कोई जीवने नथी. अज्ञानीने पोताना अशुद्धभाव साथे
कर्ताकर्मपणुं छे; ने सम्यक् अनुभव थतां धर्मीने ते अशुद्धतानुं कर्ताकर्मपणुं छूटी जाय छे.
आम टूंकामां बधी वात आचार्यदेवे समजावी दीधी छे.