Atmadharma magazine - Ank 369
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २५०० आत्मधर्म : ९ :
सम्यग्द्रष्टि अने मिथ्याद्रष्टिना
परिणाममां मोटो तफावत
धर्मीना शुद्ध चैतन्यपरिणाममां रागादिनुं कर्तृत्व छे ज नहीं.
अज्ञानी रागादिरूपे ज पोतानेअनुभवतो थको तेनो कर्ता थाय छे.

ज्ञानी अने अज्ञानीना परिणाममां आवो जे मोटो भेद छे
ते भेदने ओळखतां अपूर्व भेदज्ञान थाय छे...ने जीव रागादि
अशुद्धभावोनुं कर्तृत्व छोडीने, शुद्ध ज्ञानपरिणमन वडे मोक्षमार्गने
साधे छे. आ वात समयसारना कळश ९५–९६–९७ मां आचार्यदेवे
सुंदर रीते समजावी छे. तेनां प्रवचन आप अहीं वांचशो. (–सं.)
आत्मानो चैतन्यस्वभाव राग वगरनो होवा छतां तेने जे राग सहित
अनुभवे छे ते जीवने विकल्पनुं एटले अशुद्ध रागादि भावोनुं कर्ताकर्मपणुं कदी मटतुं
नथी; ज्ञानस्वरूप आत्मा कर्ता ने विकल्प तेनुं कर्म–एम अशुद्ध रागादिभावो साथे
अज्ञानीने कर्ताकर्मपणुं छे. जेने रागथी भिन्न चैतन्यभावनुं भान नथी, वेदन नथी, ने
चैतन्यथी विरुद्ध रागादि अशुद्धभावोरूपे पोताने अनुभवे छे, ते जीवने अशुद्धभावोनुं
कर्तापणुं छे. एटले मिथ्याद्रष्टि जीव ज ते रागादि अशुद्धतानो कर्ता छे, ज्ञानभावमां
रागादिनुं कर्तापणुं नथी; अने ते मिथ्याद्रष्टिनो जे अशुद्धभाव छे ते ज तेनुं कर्म छे,
बीजुं कोई (–शरीरादिनी जडक्रिया वगेरे) तेनुं कर्म नथी. आ कर्ता–कर्मनी मर्यादा छे.
जड साथे तो कर्ताकर्मपणुं कोई जीवने नथी. अज्ञानीने पोताना अशुद्धभाव साथे
कर्ताकर्मपणुं छे; ने सम्यक् अनुभव थतां धर्मीने ते अशुद्धतानुं कर्ताकर्मपणुं छूटी जाय छे.
आम टूंकामां बधी वात आचार्यदेवे समजावी दीधी छे.