पोतापणे छे ने राग तेमां नथी,–आम रागथी भिन्न चैतन्यस्वरूपने जे नथी जाणतो, ने
रागादिभावोने चैतन्यस्वरूपमां मेळवे छे,–एवा सविकल्प जीवने (एटले के विकल्परूपे
ज आत्माने अनुभवनार मिथ्याद्रष्टि जीवने) अशुद्धभावनुं कर्ताकर्मपणुं सदाय रहे छे,
कदी मटतुं नथी. जीव पोताना मानीने जे भावरूपे परिणम्यो ते भावनो कर्ता ते अवश्य
थाय छे. अज्ञानथी थतुं आ कर्ताकर्मपणुं क््यारे मटे? के ज्ञानना अनुभवथी सम्यक्त्व
प्रगट थाय त्यारे तेमां अशुद्धभावोनुं कर्तापणुं रहेतुं नथी. ज्ञानभावमां रागादि
अशुद्धतानुं कर्तापणुं केम होय?
कर्तापणुं पण छूटी जाय छे.
परना ज्ञान वगरनो जडस्वभावी छे; ने भगवान आत्मा कर्मना संबंध वगरनो, शांत,
पवित्र, आकुळता वगरनो, ने स्व–परने जाणनार छे.–आम बंनेनी अत्यंत भिन्नता
छे. अहो, चैतन्यनी जात रागथी सर्वथा जुदी बतावीने अमृतचंद्राचार्यदेवे अमृत
पीरस्यां छे. आवुं भेदज्ञान करे त्यारे ज विकल्पनुं कर्तृत्व छूटे ने निर्विकल्प शांत
चैतन्यरस अनुभवमां आवे. तेना ज्ञानभावमां विकल्पना कोई अंशनुं कर्तृत्व रहे नहीं.
रागथी जे रहित छे तेने रागथी सहित मानवो ते मिथ्यात्व छे; अने रागमां ज्ञान
नथी, ज्ञानमां राग नथी–एम जुदा जाणीने भेदज्ञान करनार ज्ञानी पोताने ज्ञानपणे
अनुभवे छे, ते रागने पोताना स्वरूपे अनुभवतो नथी, एटले तेनो ते कर्ता
थतो नथी.