: १२ : आत्मधर्म : अषाढ : २५००
अज्ञानी चैतन्यरसने नहि जाणतो थको कजात–एवा रागादि अशुद्धभावोरूपे ज पोताने
अनुभवतो थको तेनो ज कर्ता थाय छे. तेथी अज्ञानी तो कर्ता छे, ने धर्मी ज्ञाता छे ते
रागादिनो कर्ता नथी:–
करे करम सोही करतारा; जो जाने सो जाननहारा;
शुभ ने अशुभ भावो ते करम छे, तेनो कर्ता अज्ञानी छे, ते शुभाशुभथी जुदा
ज्ञानने जाणतो नथी.
अने जे शुभाशुभरागथी जुदा ज्ञानने जाणे छे, ते रागादिने जाणे ज छे पण
तेनो कर्ता थतो नथी:–
कर्ता सो ज्ञाता नहीं कोई, जाने सो करता नहीं होई.
जुओ, आ ज्ञानी अने अज्ञानीना तफावतनी ओळखाण!
प्रश्न:– धर्मी जीवने शुभाशुभ परिणाम थाय ज नहीं?
उत्तर:– थाय; पण ते शुभाशुभ वखते तेनाथी भिन्न ज्ञानने ते अनुभवे छे–
जाणे छे; एटले रागथी जुदुं ज्ञानपरिणमन पण तेने वर्ते छे; ने ते ज्ञानपरिणमनमां तो
रागादिनो अभाव ज छे, एटले ज्ञानपरिणमनमां ज्ञानीने रागादिनुं कर्तृत्व छे ज नहीं.
बाकी तो जे रागादि परिणाम थाय छे ते पण जीवना ज अस्तित्वमां थाय छे, ते कांई
जीवथी बहार बीजे क््यांय नथी थता; अने तेटलुं पोतानुं अशुद्धपरिणमन छे–एम धर्मी
जाणे छे; जेटलुं रागपरिणमन छे तेटलुं दुःख पण छे. पण, विशेषता ए छे के ते रागना
परिणमन काळे ज भेदज्ञानना बळे ते धर्मीजीव पोताने ते राग वगरना ज्ञातास्वरूपे
अनुभवे छे–जाणे छे–श्रद्धे छे; एटले ज्ञातापणानुं शुद्धपरिणमन तेने वर्ते छे, ते
शुद्धतामां रागादिनुं अकर्तापणुं ज छे ज्यारे अज्ञानीने तो राग वखते रागना स्वादरूपे
ज आखो आत्मा अशुद्ध अनुभवाय छे, रागथी जुदा कोई आत्मस्वरूपने ते जाणतो
नथी, तेथी ते एकला रागादि अशुद्धभावे ज परिणमतो थको तेनो ज कर्ता थाय छे.
आ रीते सम्यक्त्व अने मिथ्यात्वना भावमां परस्पर अत्यंत विरुद्धता छे. जेम
सूर्यप्रकाशमां अंधकार होतो नथी, तेम चैतन्यना ज्ञानप्रकाशमां रागादि–अंधकार होतो
नथी. अधूरीदशामां राग होय पण धर्मीना ज्ञानप्रकाशमां तेने तन्मयता नथी, तेने
ज्ञानप्रकाशथी भिन्नपणे धर्मी जाणे छे, एटले धर्मी तो ज्ञाता ज छे, रागादिकर्मनो कर्ता
ते नथी.