: १४ : आत्मधर्म : अषाढ : २५००
श्रावकनां आचार [र]
जैन–सद्गृहस्थ–श्रावकनां आचार केवा सुंदर अने
धर्मथी शोभता होय छे तेनुं केटलुंक वर्णन आत्मधर्म अंक ३६८
मां आपे वांच्युं. विशेष सकलकीर्ति श्रावकाचार अध्याय ३ तथा
४ मांथी केटलुंक दोहन आप अहीं वांचशो. श्रावकने देव–गुरु–
शास्त्रनी ओळखाण केवी होय, तत्त्वोनी ओळखाण केवी होय,
ने पछी तत्त्वज्ञानपूर्वकनी आचरणशुद्धि केवी होय? ते समजवुं
जरूरी छे; केमके तत्त्वज्ञान अने आचरणशुद्धि वडे ज जीवनुं
जीवन शोभे छे. (सं.)
[प्रश्नोतर–श्रावकाचार अध्याय ३ मांथी]
साचा देव–गुरु–धर्मना स्वरूपनुं चिंतन ते सम्यक्त्वनी द्रढतानुं कारण छे.
• वीतराग–सर्वज्ञ ते देव छे.
• रागादि हिंसारहित एवी वीतरागता ते धर्म छे.
• परिग्रहरहित, रत्नत्रयवंत गुरु छे.
ए सिवाय बीजा कोई देव नथी, बीजो धर्म नथी, बीजा गुरु नथी.–आवुं स्वरूप
जाणीने तेनी श्रद्धा करवी ते समयग्दर्शन छे.
देव केवा छे? तेमनुं स्वरूप ओळखवा माटे तेमना केटलाक गुणवाचक नामो
कहीए छीए–
• ते भगवान ईंद्रद्वारा पंचकल्याणक योग्य छे तेनी अर्हत् छे.
• दुःखरूप मोह–अरिने हणनारा होवाथी तेओ अरिहन्त छे.