: अषाढ : २५०० आत्मधर्म : १५ :
• मोहरूपी अरि, ज्ञान–दर्शनावरणरूप रज तथा अंतरायरूप रहस्य, तेने हरनारा
होवाथी अरहन्त छे.
• राग–द्वेष–मोहना विजेता होवाथी तेनो जिन छे.
• समुद्घात वखते तेओ लोकव्यापी थाय छे, अथवा केवळज्ञान वडे तेओ समस्त
लोक–अलोकने जाणी ल्ये छे,–जाणवानी अपेक्षाए सर्वव्यापी छे–तेथी तेओ ज
विष्णु छे, विष्णु बीजा कोई नथी.
• केवळज्ञानादि अनंतचतुष्टयरूप अंतरंग ऐश्वर्य सहित छे तथा बहारमां
समवसरणादि दिव्य ऐश्वर्यसहित छे तेथी तेओ ज ईश्वर छे, ईश्वर बीजा कोई नथी.
• समवसरणमां तेमनां चारमुख देखाय छे तेथी तेओ चतुर्मुख–ब्रह्मा छे, अथवा
ते शुद्धआत्मा ज परम ब्रह्मरूप होवाथी ब्रह्मा छे; कोई बीजा ब्रह्मा नथी.
• मोक्षना अनंत सुखरूप शिवकल्याणने पाम्या होवाथी तेओ ज शिवभगवान छे,
बीजा कोई शिव नथी.
• केवळज्ञानवडे समस्त पर्यायो सहित समस्त द्रव्योने जाणनारा होवाथी तेओ ज
बुद्धभगवाम छे, बुद्ध बीजा कोई नथी.
• त्रिकाळ–त्रिलोकवर्ती समस्त द्रव्य–पर्यायोने जाणनार होवाथी तेओ ज सर्वज्ञ छे.
• रत्नत्रयधर्मरूपी तीर्थना प्रवर्तक होवाथी तेओ तीर्थंकर छे.
• स्त्री–वस्त्रादि समस्त परिग्रह रहित होवाथी तेओ ज वीतराग छे; तेओ ज
धर्मनेता छे, तेओ ज निर्गं्रथ छे, तेओ ज देवाधिदेव अने जगतगुरु छे, तेओ ज
परमात्मा छे.
सर्वदोषरहित ने सर्वगुणसहित आवा भगवान जिनेन्द्रदेवनुं स्वरूप सम्यक्त्व–
शुद्धि माटे हे भव्य! तुं ओळख...अने तेनुं ध्यान कर.
आवा भगवानने ओळखीने तेमना नामनो जाप करवो ते पण महान पुण्यनुं
कारण छे.
जिनेन्द्रदेवनुं स्वरूप जे ओळखे छे एटले के तेमना चेतनमय शुद्धद्रव्य–गुण–
पर्यायने जे जाणे छे ते पोते शुद्धात्माने अनुभवीने अल्पकाळमां जिन थई जाय छे. माटे हे
भव्य! मोक्षने अर्थे अनंत महिमावंत जिनेन्द्र भगवानने ओळखीने तुं तेमनी सेवा कर.