Atmadharma magazine - Ank 369
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : अषाढ : २५००
भूख, तरस, भय, द्वेष, राग, मोह, चिंता, बूढापो, रोग, मृत्यु, खेद, परसेवो,
मद, अरति, आश्चर्य, जन्म, निद्रा, अने विवाद–आ अढार दोष संसारी जीवोने होय छे;
भगवान जिनेंद्रदेवने आ अढार दोष होतां नथी.
मोहना नाशथी अनंतसुख जेमने प्रगटी गयुं छे एवा भगवानने भूख–तरस
केवा? जेमने द्वेष नथी तेमने शस्त्रो केवा? तेमने भय न होवाथी तेमनी मुद्रा पण
अतिशय शांत–सौम्य, अने निर्विकार छे. रागादिनो अभाव होवाथी स्त्री–वस्त्र के
आभूषणनो संग नथी, आत्मस्वभावनी सिद्धि थई गई होवाथी तेमने हवे कोई चिंता
रही नथी. अविनाशी मोक्षपद प्राप्त करी लीधुं होवाथी हवे तेमने कदी बूढापो नथी.
तेमने नवा आयुनो बंध नथी तेथी नवा देहने धारण करवारूप मृत्यु नथी; जेने
आयुनो सर्वथा अभाव होय तेने कदी मरण होय नहि. बधुं जाणी लीधुं छे तेथी क््यांय
आश्चर्य थतुं नथी; पोते ज सर्वोत्कृष्ट छे,–पछी मद के अभिमान शेनां होय? शरीर
छूटतां ते मुक्त जीवने नवा जन्मनो अभाव छे. उपयोग सर्वथा शुद्ध थई गयो होवाथी
हवे तेमने निद्रा नथी; सदाय आनंदनी अनुभूतिमां ज लीन रहेनारा ते भगवानने
विषाद क््यांथी होय? अनंत वीर्यसंपन्न भगवानने ज्ञान–सुखना स्वाभाविक
परिणमनमां थाक के खेद पण केम होय?
अहो, आवा गुणसंपन्न परमदेव, ते ज जगतमां उत्तम देव छे. तेमणे बतावेलो
मार्ग ज जगतना जीवोनुं हित करनार छे.
हे भव्य! केटलाक लोक भगवान अरिहंतदेवने पण क्षुधा–तृषा–आहार–पाणी–
रोग वगेरे दोष होवानुं माने छे, तो ते सत्य हशे के असत्य हशे!–एवा प्रकारना
संदेहने तुं सर्वथा छोडी दे. पूर्णसुखरूप परिणमेल, अनंत आत्मबळवाळा अरिहंतोने
भूख–तरस के आहार–पाणी–रोग वगेरे कोई दोष होतां नथी एम निःशंक जाण.
जो भूख–तरस लागे तो वेदना थाय, ने अनंतसुख रहे नहि.
जो आहार–पाणी ग्रहण करे तो ते संबंधी राग–द्वेष थाय एटले वीतरागता
रहे नहि.
अहा, ज्यां चैतन्यना अनंत अतीन्द्रिय सुखरसनुं भोजन निरंतर थई रह्युं छे
त्यां भूख–तरस केवा? ने आहार केवो?