
जीवोने माटे आ प्रवचनसार द्वारा आचार्यदेवे वीतरागी शांतरसनी परब मांडी छे.–
आवो रे जीवो, आवो! आत्मतत्त्वनुं शुद्धस्वरूप जाणीने निर्विकल्प आनंदरसने पीओ...
जुदुं परिणमतुं थकुं मोहने जीती ल्ये छे...ने आत्माने महान आनंद पमाडे छे. बीजा
मंगळ श्लोकमां अनेकान्तमय ज्ञाननी स्तुति करतां कहे छे के अनेकान्तमय ज्ञान
आत्माना सत्यस्वरूपने प्रकाशीने, मोहअंधकारने नष्ट करे छे; आवुं अनेकान्तमय
चैतन्यतेज जयवंत वर्ते छे.
आत्माना परम आनंदनी जेने पिपासा छे, संसारसंबंधी कोई अभिलाषा जेने नथी,
मात्र आत्मानी शांतिनी ज चाहना छे, एवा आनंदपिपासु जीवोने माटे आ
भव्यजीवो खोबेखोबा भरीने अतीन्द्रिय आनंदने पीजो. आत्मानो परमआनंद
पीवडावनारुं आ परमागम छे. संतोए अतीन्द्रिय अनुभूतिमां जे चैतन्यरस चाख्यो
ते आ परमागमद्वारा भव्य जीवोने पीवडावे छे. जगतनी जेने दरकार नथी, संसारनुं
कोई पद जेने जोईतुं नथी, चैतन्यनुं आनंदपद ज जेने जोईए छे,–एक आत्मार्थनुं ज
जेने काम छे–एवा जीवोनुं हित विचारीने आ परमागम द्वारा तत्त्वनुं स्वरूप प्रगट
करवामां आव्युं छे,–के जे तत्त्वोने जाणतां आनंदमय प्रशमरस वेदनमां आवे छे.
अध्याय ७, प्रश्नोत्तरमाळा भाग–र तथा द्रव्यसंग्रह चालशे; जेमनी
पासे ते पुस्तको होय तेमणे जरूर साथे लाववा सूचना छे.