Atmadharma magazine - Ank 370
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : श्रावण–भाद्र : रप००
आनंदनी पिपासा छे, जेने चैतन्यनो शांतरस पीवा माटे एकदम तरस लागी छे, एवा
जीवोने माटे आ प्रवचनसार द्वारा आचार्यदेवे वीतरागी शांतरसनी परब मांडी छे.–
आवो रे जीवो, आवो! आत्मतत्त्वनुं शुद्धस्वरूप जाणीने निर्विकल्प आनंदरसने पीओ...
जे ज्ञान सामान्यस्वरूप छे ते ज ज्ञान विशेषस्वरूप छे,–सामान्य विशेष बंनेमां
व्यापेलुं आवुं अनेकांतमय ज्ञान जयवंत वर्ते छे; ने आवुं अनेकान्तमय ज्ञान रागथी
जुदुं परिणमतुं थकुं मोहने जीती ल्ये छे...ने आत्माने महान आनंद पमाडे छे. बीजा
मंगळ श्लोकमां अनेकान्तमय ज्ञाननी स्तुति करतां कहे छे के अनेकान्तमय ज्ञान
आत्माना सत्यस्वरूपने प्रकाशीने, मोहअंधकारने नष्ट करे छे; आवुं अनेकान्तमय
चैतन्यतेज जयवंत वर्ते छे.
त्यारपछी त्रीजा श्लोकमां कहे छे के परम आनंदना पिपासु भव्य जीवोने
चैतन्यरसनुं अतीन्द्रिय अमृत पीवडाववा माटे आ परमागमनी टीका रचाय छे
आत्माना परम आनंदनी जेने पिपासा छे, संसारसंबंधी कोई अभिलाषा जेने नथी,
मात्र आत्मानी शांतिनी ज चाहना छे, एवा आनंदपिपासु जीवोने माटे आ
प्रवचनसार परमागमनी रचना थाय छे; तेना द्वारा शुद्धात्मतत्त्वनुं ज्ञान करीने
भव्यजीवो खोबेखोबा भरीने अतीन्द्रिय आनंदने पीजो. आत्मानो परमआनंद
पीवडावनारुं आ परमागम छे. संतोए अतीन्द्रिय अनुभूतिमां जे चैतन्यरस चाख्यो
ते आ परमागमद्वारा भव्य जीवोने पीवडावे छे. जगतनी जेने दरकार नथी, संसारनुं
कोई पद जेने जोईतुं नथी, चैतन्यनुं आनंदपद ज जेने जोईए छे,–एक आत्मार्थनुं ज
जेने काम छे–एवा जीवोनुं हित विचारीने आ परमागम द्वारा तत्त्वनुं स्वरूप प्रगट
करवामां आव्युं छे,–के जे तत्त्वोने जाणतां आनंदमय प्रशमरस वेदनमां आवे छे.
शिक्षणवर्ग अने पर्युषणपर्व
* सोनगढमां जैनदर्शन शिक्षणवर्ग: ता. र७–८–७४ थी शरू करीने ता.
१प–९–७४ सुधी वीस दिवस चालशे. शिक्षणवर्गमां मोक्षमार्गप्रकाशक
अध्याय ७, प्रश्नोत्तरमाळा भाग–र तथा द्रव्यसंग्रह चालशे; जेमनी
पासे ते पुस्तको होय तेमणे जरूर साथे लाववा सूचना छे.
* दसलक्षणी–पर्युषणपर्व द्वि. भाद्र सुद पांचमथी शरू करीने चौदस सुधी
(ता. र०–९–७४ थी ३०–९–७४ सुधी) उजवाशे.