Atmadharma magazine - Ank 370
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : श्रावण–भाद्र : रप००
व्रतना प्रभावथी यमपाल जेवो चांडाल पण देव अने राजाथी सन्मानित थईने
स्वर्गमां गयो. शास्त्रकार कहे छे के अहिंसाना एक अंशना पालनथी पण चंडाळ जेवो
जीव आवुं फळ पाम्यो, तो संपूर्ण वीतरागभावरूप श्रेष्ठ अहिंसाना पालनथी जे उत्तम
फळ मळे–तेनो महिमा कोण कही शके? आम जाणीने हे भव्य जीवो! तमे अहिंसाव्रतनुं
पालन करो. (हिंसाने माटे दूष्ट धनश्रीनी कथा प्रसिद्ध छे के जेणे विषयवासनावश
पोताना पुत्रनी ज हिंसा करावी, ने पापथी दुर्गति पामी.)
सत्पुरूषोए सत्यवगेरे व्रतोनुं वर्णन अहिंसा व्रतनी रक्षाने माटे कर्युं छे; तेथी
सर्वे जीवोनुं हित करनार अने श्रेष्ठ व्रतनी सिद्धिनुं कारण एवुं उत्तम सत्यव्रत कहेवामां
आवे छे. जे धर्मात्मा–श्रावक स्थूल असत्य बोलता नथी, बोलावता नथी के बोलताने
अनुमोदता नथी, तेमने सत्य–अणुव्रत होय छे.
सत्ने जाणनारा एवा बुधजन गृहस्थोए, सर्वेनुं हित करनार, मर्यादित अने
मधुर वचन कहेवा जोईए, कोईनी निंदा करवी न जोईए अने सर्वे जीवोने सुख देनारी
भाषा बोलवी जोईए.
हे भव्य! सदाय तुं एवा ज वचन बोल के जेनाथी पोताना आत्मानुं कल्याण
थाय, जे धर्मनुं कारण होय, यश देनार होय अने सर्वथा पाप वगरनां होय.
वळी बुधजनोए बीजा जीवोनुं पण हित करनारां, राग–द्वेष वगरनां, अने धर्म
तथा मोक्षमार्गनो उत्साह वधारनारां वचनो ज सदा कहेवा जोईए.
ज्ञानीजनो सदाय जिनागम–अनुसार, अनिंद्य–सुंदर प्रसंशनीय, विकथादिकथी
रहित अने धर्मोपदेशथी भरेलां ज वचन बोले छे.
श्रावक द्वारा बीजाना हितने माटे कदाचित कठण वचन पण कहेवामां आवे,
अथवा बीजा जीवनी रक्षा माटे के हित माटे (पण कोईनुं अहित न थाय ए रीते)
कथंचित् असत्य पण कहेवामां आवे तो ते पण (तेमां अहिंसानो ज अभिप्राय
होवाथी) सत्य गणवामां आव्युं छे. अने, जे बीजाने दुःख देनार होय, सांभळतां भय
के दुःख