Atmadharma magazine - Ank 370
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण–भाद्र : रप०० आत्मधर्म : १९ :
अज्ञानथी ईष्ट लागे छे. ज्ञानीने पोतानो आत्मरस ज परम ईष्ट लाग्यो छे,
एना सिवाय बीजुं कांई तेने ईष्ट नथी.
* हे भाई, आत्माना अनुभव पहेलांं पण अंतरमां ‘ज्ञानना विचार वडे’ तेने
शोध. ज्ञान वडे तेने शोधवाना प्रयत्न वडे पण आत्मानो रस वधतो जशे ने
रागनो रस छूटतो जशे–ए रीते अंतरमां शोधतां तने जरूर रागथी भिन्न
आत्मानो अनुभव थशे.
* ज्ञानानंदस्वरूप चैतन्यमूर्ति आत्मा, के जे विश्वमां सौथी श्रेष्ठ एवो विश्वनाथ
छे, हे जीव! तेनो तुं विश्वास कर. पोताना विश्वनाथनो विश्वास करतां एनी
अंदरथी कोई अपूर्व आनंदनी अनुभूति सहित जे अतीन्द्रियज्ञान प्रगटे छे ते
ज्ञान ज मोक्षनुं साधक छे. विश्वनाथना विश्वास वगरनुं बीजुं बहारनुं गमे
तेटलुं जाणपणुं होय ते मोक्षने साधवामां काम नथी आवतुं, एटले ते तो बधुंय
अज्ञान छे.
* आत्मअनुभवी संतो जगतने जगाडे छे के हे जीवो! संसार तो तमे जोयो–ए
तो जोई लीधो,–एमां कांई जोवा जेवुं नथी, पण अंतरमां आनंदमय
चैतन्यतत्त्व छे ते जोवा जेवुं छे. एकत्व–विभक्त आत्मा, जगतमां महा सुंदर
छे, ते जोवा जेवो छे.–जेने जोतां महान आनंद थाय छे, एवा आत्मप्रभु तारा
अंतरमां बिराजे छे. खरेखरी जोवा जेवी वस्तु तो तारो आत्मा छे. तेनी समीप
जईने–तेमां तन्मय थईने ज्यां सुधी तेने तुं जोतो नथी, ने बहारना पदार्थोने
ज जुए छे त्यांसुधी तने सम्यक्त्वादि सुख के मोक्षनो मार्ग हाथमां नहीं आवे.
अहा, अंतरमां बिराजमान चैतन्यप्रभु, तेमां तन्मय थईने तेने जोतां अपूर्व
आनंदमय मोक्षमार्ग हाथमां आवे छे, ने जगतना पदार्थोनुं आश्चर्य रहेतुं नथी.
* रागथी भिन्न ज्ञाननो स्वाद जेने अनुभवमां नथी आवतो, तेने मोक्षना हेतुरूप
धर्मनी खबर नथी; रागनुं वेदन तो दुःखरूप छे, ने तेनुं फळ तो बाह्यसामग्री
छे, तेथी शुभरागने जे ईच्छे छे,–तेने सारो माने छे, ते जीव संसार–भोगने ज
ईच्छे छे. मोक्ष तो ज्ञानमय छे, तेनी आराधना ज्ञानवडे थाय छे. आवा ज्ञाननुं
वेदन करवुं तेनुं नाम उत्तम शील छे; ने ते शील मोक्षनुं कारण छे. आवुं शील
आत्माने महान आनंददायक छे; तेमां परसंग नथी, आत्मा पोताना एकत्वमां
शोभे छे.
* रागनुं वेदन ते कुशील छे; तेमां परसंग छे, ने तेनुं फळ दुःख छे. अहो, चैतन्य–