: ४ : आत्मधर्म : श्रावण–भाद्र : रप००
बहेनश्रीना बहुमानना प्रसंगनुं मनोहारी विरल द्रश्य जोई मुमुक्षुओनां हैयां आनंदथी
ऊछळतां हतां; जयकारना ऊंचा मधुरा नादोथी गगनमंडळ गुंजी ऊठयुं हतुं;
आबाळगोपाळ सौनां हृदयो भक्तिऊर्मिथी ऊभरातां हतां; सर्वत्र आनंद अने
प्रसन्नता छवायेलां द्रष्टिगोचर थतां हतां.
आ मंगल उत्सवना दिवसोमां पूज्य गुरुदेव प्रसन्नभावे अनेक वार बोलता
हता के–चंपाबेनने बहारनुं आ बधुं बोजो लागे छे; पण लोकोने एमना उपर भाव छे,
भक्तिप्रेम छे, एटले लोको तो एमनो भाव प्रगट करे. बेने (चंपाबेने) तो बधुं
जोया–जाण्या करवुं...लोकोनां भाग्य छे, वळी बाईओनां तो महान भाग्य छे के आ
काळे बेन (चंपाबेन) जेवां धर्मरत्न पाक््यां छे...एमना उपर बधाने एकसरखो प्रेम
छे;... लोको एमना माटे करे एटलुं ओछुं छे;...एमने क््यां कांई छे? एमणे तो जे थाय
ते जोवुं–जोया करवुं;...अमे तो एमां (लोको तेमनो जन्मोत्सव ऊजवे, तेमनुं बहुमान
करे तेमां) खुशी छीए;...लोकोने उत्साह छे, घणो उत्साह छे;...बेन तो धर्मरत्न छे.
उत्सवमां घणुं माणस आव्युं छे. लोकोने चंपाबेन उपर घणा भाव छे–एम
पूज्य गुरुदेवना हृदयोद्गार नीकळता हता त्यारे पू. बहेनश्रीए अति अति नरम
थईने कह्युं–‘अमे तो अमारा आत्मानुं करवा आव्या छीए (अर्थात् अमने आ बधुं
उपाधि लागे छे). पूज्य गुरुदेव, तेमनी सहज निस्पृहता जोई, प्रसन्न चित्ते
धर्मवात्सल्यपूर्वक बोल्या के,–लोकोने भाव थाय,...तमारे जोया करवुं,...तमारे शुं छे?...
लोकोने भाव तो थाय ने! मारा हिसाबे तो लोको जे कंई करे छे ते (पण) ओछुं छे.
–आ प्रमाणे विभिन्न प्रसंगे पूज्य गुरुदेवना श्रीमुखथी नीकळतां ऊर्मिभर्यां
मंगळ वचनो मुमुक्षुसमाजना आनंदोल्लासमां अभिवृद्धि करतां हतां.
प्रवचन पछी श्रद्धांजलि–समर्पण–समारोहमां श्री खीमचंदभाई शेठ, श्री
चंपकभाई डगली तथा श्री गिरधरलालभाई नागरदास शाहे श्रद्धा–भक्तियुक्त
भावभीनी अंजलि समर्पित करी हती. त्यार बाद हीरक जयंतीनी खुशालीमां ‘६१’
आंकना एकमथी रूा. ३र००० उपरांतनी रकमो ज्ञानप्रचार खाते जाहेर थई हती.
आजना मांगलिक दिने पू. बहेनश्रीबेनना घरे परमकृपाळु पूज्य गुरुदेवना
आहारदाननो आनंदकारी प्रसंग हतो. आ प्रसंगे पू. गुरुदेवना मंगल वचनोद्गार
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