थतुं नथी; मोक्षना किनारे तो आवी गया छे पण संज्वलन–राग साक्षात् मोक्षकार्य
थवा देतो नथी. अरे जीव! धर्मरूपे परिणमेला मुनि–महात्मानो शुभराग पण मोक्षने
मोक्षनुं साधन थनार नथी. रागने जे मोक्षनुं साधन माने छे ते तो मोक्षमार्गथी सर्वथा
विरुद्ध वर्ते छे; अने रागने जे मोक्षनुं साधन नथी मानता, राग वगरनी
धर्मपरिणतिरूपे जे परिणम्या छे एवा धर्मपरिणत–जीवने पण जेटलो शुभराग छे ते
तो मोक्षथी विरुद्धकार्य करनारो ज छे.–मोक्ष अने बंधना कारणोनुं आवुं स्वरूप ओळखे
तेने भेदज्ञान थाय, ने मोक्षमार्ग प्रगटे.
निरंतर वर्ते छे, एटलो तो राग तेने थतो ज नथी.
दुःखदाहरूप रागना कोई अंशने उपादेय समजे नहि...ते तो आनंदरसनो अनुभव
वधारतो वधारतो मोक्षने साधे छे...एवा आत्मामां सदाय मंगल उत्सव छे.
छे, ते सांभळतां ज परमार्थरसिक जीवो मुग्ध बनी जाय छे: वाह प्रभु!
तारी वाणी अलौकिक चैतन्यने प्रकाशनारी छे. चैतन्यना निर्विकल्प
आनंदनो स्वाद चखाडनारी आपनी वाणी, तेनी मधुरतानी शी वात!
एनी मीठाशनी शी वात! ए वाणीनो नाद एक वार पण जेणे
सांभळ्यो तेनुं मन हराई जाय छे, एटले चैतन्य सिवाय बीजा कोई
पदार्थमां एनुं मन लागतुं नथी.