: द्वि. भाद्र : २५०० आत्मधर्म : ९ :
प्रवचनसर
वीतरागचारित्रना फळस्वरूप अतीन्द्रियज्ञान अने अतीन्द्रियसुख
–तेना दिव्य महिमानी मंगल वीणा
भगवाननी दिव्यवाणीरूप जे प्रवचन, तेनो सार शुं? ते आ प्रवचनसारमां
कुंदकुंदाचार्यदेवे बताव्युं छे; अने अमृतचंद्राचार्यदेवे तत्त्वप्रदीपिका नामनी टीका रची छे–
जे दीपकनी माफक तत्त्वोनुं स्वरूप प्रकाशे छे. तेओ टीकाना मंगलाचरणमां ज्ञानानंद–
स्वरूप उत्कृष्ट आत्माने नमस्कार करे छे. ते आत्मा केवो छे? के स्वानुभवप्रसिद्ध छे.
आवा स्वानुभव–प्रसिद्ध परमात्माने ओळखीने तेने जे नमस्कार करे छे तेने पोतामां
पण पोतानो आत्मा स्वानुभव–प्रसिद्ध थाय छे.
बधाय आत्मा उत्कृष्ट ज्ञान–आनंदस्वरूप छे; तेने ओळखीने स्वानुभव करतां
ते पर्यायमां प्रसिद्ध थाय छे. अहो, ज्ञानआनंद जेने पूर्ण प्रगटी गया छे एवा उत्कृष्ट
सिद्धपरमात्मा, ते सर्वे परमागमना साररूप छे. जिनवाणीरूप प्रवचन, तेनो सार ए
छे के स्वानुभव वडे आत्मप्रसिद्धि करीने सिद्धदशा प्रगट करवी.
पंचपरमेष्ठी मंगलस्वरूप छे. शास्त्रकार अने टीकाकार बंने आचार्य भगवंतो
पोते पण परमेष्ठीस्वरूप छे. पण हजी पूर्णदशारूप सर्वज्ञपद नथी प्रगट्युं तेथी पूर्ण–
दशारूप परमात्माने नमस्कार करे छे.
अनेकान्त–प्रकाश जयवंत हो
बीजा श्लोकमां आचार्यदेवे अनेकान्तमय ज्ञाननी स्तुति करी छे. अनेकान्तमय
तेज–प्रकाश मोहअंधकारने नष्ट करे छे, ने स्व–पर पदार्थोना यथार्थ स्वरूपने प्रकाशे छे.
आवुं आनंदमय अनेकान्त ज्ञान–तेने नमस्कार हो. भगवाने कहेलां शास्त्रो अनेकान्त
स्वरूपना प्रकाशक छे ते जयवंत छे. ने अनेकान्तस्वरूप आत्माने प्रकाशनारा भावश्रुत–
ज्ञानरूप अनेकान्तप्रकाश, ते पण साधकपणामां सदा जयवंत वर्त छे, एटले ते भाव–
श्रुत वच्चे भंग पड्या वगर केवळज्ञानने साधशे. अनेकान्तमय ज्ञानप्रकाश जगतना
स्वरूपने प्रकाशे छे अने मोह–अंधकारने नष्ट करे छे.–तेने सदा जयवंत कहीने स्तुति
करी.