Atmadharma magazine - Ank 371
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: द्वि. भाद्र : २५०० आत्मधर्म : ११ :
करीने अत्यंत मध्यस्थ थया छे, बधा पुरुषार्थना सारभूत अने आत्माने उत्कृष्ट हितरूप
एवी मोक्षलक्ष्मीने ज जेमणे उपादेय करी छे, वच्चे सरागचारित्रना फळमां स्वर्गवैभव
आवशे खरो पण तेने उपादेय नथी कर्यो, तेने तो अनिष्टफळ जाणीने हेय कर्यो छे,
शुद्धोपयोगने अने तेना फळरूप मोक्षने ज उपादेयरूपे स्वीकार्यो छे. मोक्ष एटले
अतीन्द्रिय पूर्ण ज्ञान ने पूर्ण सुख–ते ज आत्माने परम हितरूप छे. अने एवी
मोक्षदशा भगवंत पंचपरमेष्ठीना प्रसादथी ऊपजे छे. पंचपरमेष्ठीनो उपदेश झीलीने
पोते पोतामां मोक्षमार्ग प्रगट कर्यो, त्यारे पंचपरमेष्ठी भगवंतोनी प्रसन्नता थई–एम
भक्तिथी कहेवाय छे, केमके मोक्षमार्ग प्रगट करवामां पंचपरमेष्ठी ज निमित्त होय छे,
विपरीत निमित्त होतुं नथी. आम यथार्थ निमित्तनुं ज्ञान कराववा, तेमना प्रत्येनी
परम भक्तिने लीधे, तेमना प्रसादथी ज मोक्ष ऊपजे छे–एम कहेवामां आवे छे. आवी
मोक्षलक्ष्मीने ज आचार्यदेवे उपादेयपणे नक्की करी छे. अहो, आवा महात्मा तने
आत्माना उत्कृष्ट ज्ञान–आनंदनी वात संभळावे छे, तो हे भाई! तुं पण ते तरफना
अपूर्व उल्लास भावथी सांभळीने तारा उपयोगने तेमां एकाग्र करजे एटले तने पण
अंतरमां ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानी उपलब्धि थशे.
जेमणे शुद्धोपयोग द्वारा मोक्षलक्ष्मीने उपादेय करी छे एवा महात्मा तने
मोक्षसुखनी वात संभळावे छे. तुं पण तेने उपादेय करजे; रागने के पुण्यने उपादेय
करीश नहीं. वीतरागभावरूप जे मोक्षपुरुषार्थ ते ज साररूप छे; शुभरागनो पुरुषार्थ
साररूप नथी, उपादेय नथी; वीतरागभावना फळरूप मोक्षलक्ष्मी ते ज उपादेय छे. शुभ–
रागना फळमां स्वर्गनो वैभव मळे त्यां पण जीव आकुळताथी दुःखी ज छे, एम
आगळ बतावशे.
जेणे आवी विवेकज्योति प्रगट करीने मोक्षनो पुरुषार्थ कर्यो तेना उपर भगवंत
पंचपरमेष्ठीनी कृपा थई, परमेष्ठी भगवंतो तेना उपर प्रसन्न थया. एटले के साधक–
दशामां जीवने आवा आत्मस्वरूप पामेला पंचपरमेष्ठी ज निमित्तरूपे होय, एनाथी
विरुद्ध निमित्त न होय. तेथी यथार्थ निमित्तनी प्रसिद्धि करवा कह्युं के मोक्षलक्ष्मीनी
उत्पत्ति भगवंत पंचपरमेष्ठीना प्रसादथी थाय छे. वीतरागभावरूपे परिणमेला जीवो ज
वीतरागी मोक्षमार्गना निमित्त थाय छे.
समयसारनी पांचमी गाथामां पण निज–आत्माना वैभवनुं वर्णन करतां आचार्यदेव
कहे छे के भगवान सर्वज्ञदेवथी मांडीने अमारा गुरुपर्यंत जे परापर गुरुओ–तेमणे