थई छे. पोताने जे निजवैभव प्रगट्यो तेमां निमित्त कोण छे तेनी प्रसिद्धि करीने
विनय कर्यो छे.
आचार्यदेव कहे छे के पंचपरमेष्ठी भगवंतोने नमस्कार करीने, तेमना प्रसादथी में
साक्षात् मोक्षमार्ग अंगीकार कर्यो छे. हुं मोक्षमार्गनो आश्रय करुं छुं, एटले के
शुद्धात्मामां एकाग्र थतां मोक्षमार्ग पर्याय प्रगटी जाय छे तेने मोक्षमार्गनो आश्रय कर्यो
–एम कहेवाय छे.
जाणे पंचपरमेष्ठी भगवंतो पोतानी सन्मुख साक्षात् बिराजता होय तेम तेमने
नमस्कार करे छे, अने वीतराग–शुद्धोपयोगरूप चारित्र अंगीकार करवानी प्रतिज्ञा करे छे.
स्वसंवेदनथी प्रत्यक्ष ज्ञानदर्शनस्वरूप छुं. देहनी क्रियारूप हुं नथी, वंदनना रागनो
विकल्प ऊठ्यो ते विकल्पस्वरूप हुं नथी, हुं तो ज्ञानदर्शनस्वरूप छुं, ने मारा आवा
आत्माने में स्वसंवेदनमां प्रत्यक्ष कर्यो छे, एटले जेमने नमस्कार करे छे तेमना जेवो
अंश पोतामां प्रगट करीने नमस्कार करे छे.
ने असुरेन्द्रोथी वंदित छे तेथी त्रणलोकना एक सर्वोत्कृष्ट गुरु छे. ऊर्ध्वलोकना सुरेन्द्रो,
मध्यलोकना नरेन्द्रो ने अधोलोकना भवनवासी वगेरे असुरेन्द्रो एम त्रण लोकना
त्रण लोकना ईन्द्र वगेरे मुख्य जीवो भगवानने वंदे छे, तेथी त्रणलोकथी भगवान
वंदनीय छे.