छे. आ रीते भगवानने ओळखीने, वर्तमान तीर्थना नायक श्री वर्द्धमानदेवने नमस्कार
करुं छुं.
छे. जुओ, पोते पण दर्शनज्ञानस्वभावरूप छे एवुं स्वसंवेदन कर्युं छे, अने जेने
नमस्कार करुं छुं तेओ पण शुद्ध दर्शनज्ञानस्वरूप छे–एम ओळखाण करीने नमस्कार
कर्या छे. वळी परमशुद्धउपयोगभूमिका जेमणे प्राप्त करी छे एवा आचार्य–उपाध्याय–
साधु सर्वे श्रमणोने नमस्कार करुं छुं. ते मुनिवरो ज्ञानाचार–दर्शनाचार–चारित्राचार
वगेरे पांच आचारयुक्त छे; ने तेमणे परम शुद्ध उपयोग प्रगट कर्यो छे. जुओ, मोक्ष–
साधक जैनमुनि केवा होय ते पण ओळखाव्युं.–मुनि तेने कहेवाय के जेणे शुद्धउपयोग–
भूमिका प्राप्त करी होय.–आ रीते पंचपरमेष्ठीने नमस्कार करनारनी एटली जवाबदारी
छे के शुद्धोपयोगने अने रागने भिन्न–भिन्न ओळखे. रागनो जे आदर करशे ते पंच–
परमेष्ठीने साचा नमस्कार नहि करी शके. अहीं तो शास्त्रकार आचार्य पोते
शुद्धोपयोगरूपे परिणमेला छे; पोते पंचपरमेष्ठीनी पंक्तिमां बेसीने पंचपरमेष्ठी
भगवंतोने उत्कृष्ट नमस्कार कर्या छे.
तेम ज एकेकने नमस्कार करुं छुं, तेमनी आराधना करुं छुं. जेम विदेहक्षेत्रे सीमंधरादि
तीर्थंकरो साक्षात् बिराजे छे तेम बधाय पंचपरमेष्ठी भगवंतोने मारा ज्ञानमां साक्षात्–
रूप करीने तेमने अभेद नमस्कार करुं छुं.
भरतक्षेत्रमां अत्यारे पंचमकाळमां तीर्थंकरनो अवतार भले नथी थतो–पण विदेहक्षेत्रमां
तो साक्षात् तीर्थंकरो अत्यारे पण बिराजे छे, ने ते तीर्थंकरो पोताना ज्ञानमां साक्षात्नी