जेवा सीमंधरादि तीर्थंकर भगवंतो साक्षात् वर्तमानमां बिराजे छे तेवा ज साक्षात्
पंचपरमेष्ठी भगवंतो पण जाणे वर्तमान मारी सन्मुख ज बिराजता होय–एम परम
भक्तिने लीधे मारा ज्ञानमां तेमने वर्तमानकाळगोचर करीने आराधुं छुं–सन्मान करुं छुं
–मारा मोक्षलक्ष्मीना स्वयंवर–मंडपमां तेमने बोलावुं छुं.
लक्ष्मीने साधवा जतां पंचपरमेष्ठी जेवा श्रेष्ठने साथे राख्या, हवे ते मोक्षनी प्राप्तिमां
वच्चे विघ्न नहीं आवे. अहो, आ तो मोक्षने साधवानो आनंदमय प्रसंग छे;
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी एकतारूप एकाग्रता प्रगट करवानो आ उत्तम अवसर छे;
तेमां पंचपरमेष्ठी भगवंतोने हुं सन्मानुं छुं...परम भक्तिथी तेमने नमस्कार करुं छुं.
कई रीते? के मारा आत्माने स्वानुभवप्रत्यक्षरूप करीने नमस्कार करुं छुं.–आम वंदन
करनार अने वंदनीय बंनेमां अंशे सद्रशपणुं छे.
तेम ज पंचपरमेष्ठीना आत्मानुं स्वरूप ओळखीने नमस्कार कर्या छे. नमस्कार वखते
जे विकल्प उठ्यो छे तेनाथी तो पोताने भिन्न जाणे छे, ने अंदर आत्मानी शुद्धता थती
जाय छे, एनुं नाम भावनमस्कार छे. आवा नमस्कार करीने ते पंचपरमेष्ठी
भगवंतोना आश्रमने पामीने हुं सम्यग्दर्शन–ज्ञानसम्पन्न थयो छुं. जुओ, पोताना
आत्मामां सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञान थयुं तेनी निःशंक खबर पडे छे. आवा सम्यग्दर्शन
ने सम्यग्ज्ञानपूर्वक ज शुद्धोपयोगी चारित्रदशा होय छे. मुनिओने पण शुद्धोपयोगरूप
जे वीतरागचारित्र छे ते ज मोक्षनुं कारण छे; शुभराग रही जाय तेटलुं पुण्यबंधनुं
कारण छे, ते मोक्षनुं कारण नथी. माटे आचार्यदेव कहे छे के पुण्यबंधना कारणरूप एवा
ते रागने ओळंगी जईने हुं वीतरागचारित्रने प्राप्त करुं छुं.
करवानी आ वात छे. अहा, कुंदकुंदाचार्य जेवा सन्त कहे छे के पुण्यना कारणरूप एवुं
सरागचारित्र, ते वच्चे आवी पड्युं होवा छतां तेने ओळंगीने, मोक्षना कारणरूप