वस्तुस्वभावने दर्शावता आ महत्त्वनां प्रवचन जिज्ञासुओने
तत्त्वनिर्णय माटे खास उपयोगी छे. अनेकान्तमय आत्मस्वरूपने
जे नक्की करे छे तेने स्व–परनुं अत्यंत भेदज्ञान थईने, पोताना
एकत्वस्वभावना आश्रये सम्यक्परिणमन शरू थाय छे. गुरुदेव कहे
छे के आ गाथामां जैनशासननो महान सिद्धांत छे, तेने समजतां
वीतरागविज्ञान प्रगटे छे. हे भाई! सर्वज्ञ वीतरागदेवे
जिनशासनमां प्रसिद्ध करेलुं आ वस्तुस्वरूप तुं जाण...तो तारुं ज्ञान
वीतरागभावथी खीली ऊठशे, ने तारो आत्मा स्वपरिणामनी
निर्मळतामां शोभी ऊठशे.–ए ज महावीर भगवानना निर्वाणनो
साचो महोत्सव छे. आ वीतरागविज्ञाननुं महान आनंद–फळ छे;
आ ज महावीर भगवानना शासननी साची प्रभावना छे...ने आ
ज वीरप्रभुए बतावेलो मोक्षमार्ग छे.
अढीहजार वर्षना उत्सवमां खास करवा जेवुं छे. भगवानना नामे
बाग–बगीचा, स्कुलो के दवाखाना वगेरे तो लौकिककार्य छे,
एवा कार्यो तो बीजा लौकिक माणसोमां पण थाय छे, ते कांई
महावीर–शासननी विशेषता नथी; महावीर भगवानना