Atmadharma magazine - Ank 371
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 21 of 45

background image
: १८ : आत्मधर्म : द्वि. भाद्र : २५००
शासननी विशेषता तो, अनेकान्तमय वस्तुस्वरूप बतावीने
भेदज्ञान अने वीतरागता करावे छे ने ए रीते मोक्षमार्ग देखाडीने
जीवोनुं परम हित करे छे,–तेमां ज छे. वीरप्रभुए बतावेलो आवो
हितमार्ग पोते समजवो ने जगतमां तेनो प्रचार थाय तेम करवुं ते
ज प्रभुना मोक्षमहोत्सवनी साची उजवणी छे. (सं.)
परिणाम विण न पदार्थ, ने न पदार्थ विण परिणाम छे;
गुण–द्रव्य–पर्ययस्थित ने अस्तित्वसिद्ध पदार्थ छे. १०.
आ लोकमां परिणाम वगरनी वस्तु नथी, ने वस्तु वगर परिणाम होतां नथी.
द्रव्य–गुण–पर्यायमां स्थित वस्तु अस्तित्वस्वरूप छे.
वस्तु परथी भिन्न छे, पण पोताना परिणामथी भिन्न नथी. पर वगरनुं
सत्पणुं छे, पण पोताना परिणाम वगर वस्तुनुं सत्पणुं होतुं नथी.
सत् वस्तुमांथी पोताना कोई द्रव्य–गुण–पर्यायने काढी नांखी शकाय नहि, केमके
वस्तुनुं सत्पणुं ज द्रव्य–गुण–पर्यायनुं बनेलुं छे. परिणामने काढी नांखो तो वस्तुनी
हयाती ज रहेती नथी. परिणाम विना वस्तु हयाती धरती नथी, कारण के वस्तु द्रव्यादि
वडे परिणामथी जुदी अनुभवमां आवती नथी–जोवामां आवती नथी.
परिणाम छे ते परिणामी–वस्तुने सिद्ध करे छे. परिणामी वस्तु पोताना
परिणाम वगरनी होती नथी. वस्तु पोते सामान्य–विशेष स्वरूप छे. सामान्य वगरनुं
विशेष, के विशेष वगरनुं सामान्य होतुं नथी. एक ज वस्तुना आश्रये रहेलां द्रव्य ने
पर्याय, तेमने सर्वथा जुदा मानतां वस्तुनुं अस्तित्व ज साबित थई शकतुं नथी.–माटे
परिणाम अने परिणामी बंने स्वरूपे वस्तुने एकसाथे जो. वस्तुना परिणाम अने
परिणामी अन्य वस्तुथी तो सदाय जुदा छे, पण पोतानी वस्तुथी तेओ जुदा नथी,
वस्तु पोते ज परिणामस्वभावी छे. वस्तु पोताना द्रव्य–गुण–पर्यायमां वसेली छे,
उत्पाद–व्यय–ध्रुवतारूप सत्पणुं ते ज वस्तुना स्वरूपनुं अस्तित्व छे. पर वस्तुना
संयोगमां कांई वस्तुनुं अस्तित्व नथी; एटले तेनो वियोग थतां पण वस्तुना
अस्तित्वने कोई बाधा पहोंचती नथी.