: द्वि. भाद्र : २५०० आत्मधर्म : १९ :
भाई, तारा आत्मानी रमत तारा परिणाम अने परिणामी वच्चे छे; बीजा
साथे तारे कोई संबंध नथी. तारा परिणामरूपे थनार तारी वस्तु छे, बीजुं कोई नथी.
ने तुं तारा परिणामरूपे ज थनार छो, अन्यरूपे थनार तुं नथी.–आम परथी अत्यंत
भिन्न पोताना स्वरूपअस्तित्वने नक्की करनार जीव, पोताना परिणामने पोतामां ज
समावतो थको, पर प्रत्ये मोहरूपे जराय नहि परिणमतो थको, ‘शुद्ध’ पणे रहे छे.–
आवुं शुद्धपणुं ते मोक्षमार्ग छे...ते मोक्षमार्गपरिणाममां तन्मयपणे आत्मा स्वंय ते रूपे
ते काळे परिणम्यो छे–ए धर्मी जाणे छे.
वस्तु पोताना गुण–पर्यायमां ‘अकंप’ रहेली छे–ए ज तेना स्वरूपनी
रक्षा छे. ‘परिणाम’ परिणामीथी जुदा नथी, पण परिणाम बीजा परिणामथी जुदा छे:
जेमके–
एक आत्मामां क्षायिकसम्यक्त्व छे, ने रागादि पण छे; हवे त्यां–
* सम्यक्त्व अने राग ते परिणामो आत्मवस्तु वगर होतां नथी, ए बंने
परिणामो आत्मवस्तुनां ज छे.
* पण तेमां, जे सम्यक्त्व–परिणाम छे ते राग वगरनां छे, ने रागपरिणाम
सम्यक्त्व वगरनां छे; ए रीते सम्यक्त्व अने राग ए बंने परिणामो एक–
बीजा वगरनां छे; पण ते परिणामो वस्तु वगरनां नथी.
* सम्यक्त्व अने राग बंने परिणामो एकबीजाथी भिन्न छे, बंनेनां कार्य भिन्न छे,
बंनेना स्वाद भिन्न छे.
हे भाई.....सर्वज्ञ वीतरागदेवे जिनशासनमां प्रसिद्ध करेलुं आ वस्तुस्वरूप तुं
जाण....तो तारुं ज्ञान वीतरागभावथी खीली ऊठशे, तारो आत्मा स्वपरिणामनी
निर्मळतामां शोभी ऊठशे.–ए ज महावीर भगवानना निर्वाणनो साचो महोत्सव छे.
परिणामी अने परिणाममां वस्तुस्वरूपनी मर्यादा समाप्त थाय छे; ते मर्यादाने
ओळंगीने परवस्तु साथे संबंध मानीश नहि. वीतरागमार्गमां कहेली वस्तुस्वरूपनी
मर्यादा ते वीतरागतानुं कारण छे.
हे भाई!..... तुं ‘परिणामने’ एकला न जोईश.
परिणामनो संबंध पर साथे बांधीश नहि.
परिणामनो संबंध परिणामी वस्तु साथे जाणजे.