थता जशे, वस्तु पोते ज पोताना शुद्धपरिणामरूपे परिणमवा मांडशे.
अशुद्ध परिणमन नथी होतुं, पण सम्यक्त्वादि अनंतगुणना शुद्धपरिणाम होय छे.
तेनी ज्ञानपरिणति रागथी जुदी परिणमीने, चैतन्यवस्तुमां एकत्वपणे परिणमे छे
एटले ते ज्ञानचेतनामां शुद्धता–वीतरागता–आनंद–सम्यक्त्व वगेरे अनंत शुद्धभावोनो
रस भेगो वेदाय छे.–आ वीतरागीविज्ञाननुं महान आनंद–फळ छे.–आ ज महावीर
भगवानना निर्वाणनो साचो महोत्सव छे....आ ज वीरप्रभुए बतावेलो मोक्षमार्ग छे.
करवा जेवुं छे. भगवानना नामे बगीचा, स्कुलो के दवाखाना वगेरे तो लौकिक–कार्य छे,
एवा कार्यो तो बीजा लौकिक माणसोमां पण थाय छे, ते कांई महावीर भगवाननी
विशेषता नथी; महावीर भगवानना शासननी विशेषता तो अनेकान्तमय वस्तुस्वरूप
बतावीने भेदज्ञान अने वीतरागता करावे छे ने ए रीते मोक्षमार्ग देखाडीने जीवोनुं
परमहित करे छे,–तेमां ज छे. वीरप्रभुए बतावेलो आवो हितमार्ग पोते समजवो ने
जगतमां तेनो प्रचार थाय तेम करवुं ते ज प्रभुना मोक्षमहोत्सवनी साची उजवणी छे.
वस्तुस्वभाव लक्षमां राखीने बधा शास्त्रोनुं तात्पर्य समजवुं जोईए. ज्ञानतत्त्वना
निर्णयपूर्वक ज्ञेयतत्त्वोनुं ज्ञान ते प्रशमनुं एटले के वीतरागी शांतिनुं कारण छे.
तन्मयपणे परिणमेली छे. नित्य टकवापणुं ने परिणमवापणुं–एवा अनेकान्तस्वभावथी
सत् वस्तु विद्यमान छे.