Atmadharma magazine - Ank 371
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : द्वि. भाद्र : २५००
एटले पर्याये–पर्याये परिणामने जाणतां वस्तुने पण भेगी लक्षमां राखजे....
वस्तु तो ज्ञानानंद–शुद्धस्वभावी छे, एटले तेने लक्षमां राखतां तारा परिणाम पण शुद्ध
थता जशे, वस्तु पोते ज पोताना शुद्धपरिणामरूपे परिणमवा मांडशे.
‘मारा परिणाम मारी वस्तुथी थाय छे’–एम नक्की करनार जीव स्ववस्तुने
लक्षमां राखीने (अने पर वस्तुथी भिन्नता राखीने) परिणमतो होवाथी, तेने एकलुं
अशुद्ध परिणमन नथी होतुं, पण सम्यक्त्वादि अनंतगुणना शुद्धपरिणाम होय छे.
जे राग–परिणाम थाय छे ते मारी चैतन्यवस्तु वगर होतां नथी, एम रागना
काळे ज चैतन्यवस्तुने साथे ने साथे देखनारा जीवने रागमां एकत्वबुद्धि रहेती नथी,
तेनी ज्ञानपरिणति रागथी जुदी परिणमीने, चैतन्यवस्तुमां एकत्वपणे परिणमे छे
एटले ते ज्ञानचेतनामां शुद्धता–वीतरागता–आनंद–सम्यक्त्व वगेरे अनंत शुद्धभावोनो
रस भेगो वेदाय छे.–आ वीतरागीविज्ञाननुं महान आनंद–फळ छे.–आ ज महावीर
भगवानना निर्वाणनो साचो महोत्सव छे....आ ज वीरप्रभुए बतावेलो मोक्षमार्ग छे.
भगवान महावीरे कहेला आवा वीतराग विज्ञाननो प्रचार करवो, आवुं
ज्ञानसाहित्य लोकोमां प्रचार पामे तेम करवुं, ते आ अढीहजार वर्षना उत्सवमां खास
करवा जेवुं छे. भगवानना नामे बगीचा, स्कुलो के दवाखाना वगेरे तो लौकिक–कार्य छे,
एवा कार्यो तो बीजा लौकिक माणसोमां पण थाय छे, ते कांई महावीर भगवाननी
विशेषता नथी; महावीर भगवानना शासननी विशेषता तो अनेकान्तमय वस्तुस्वरूप
बतावीने भेदज्ञान अने वीतरागता करावे छे ने ए रीते मोक्षमार्ग देखाडीने जीवोनुं
परमहित करे छे,–तेमां ज छे. वीरप्रभुए बतावेलो आवो हितमार्ग पोते समजवो ने
जगतमां तेनो प्रचार थाय तेम करवुं ते ज प्रभुना मोक्षमहोत्सवनी साची उजवणी छे.
भगवान महावीर परमात्माए कहेलो वस्तुनो स्वभाव केवो छे–के जेने जाणतां
वीतरागविज्ञान थाय छे! ते आ प्रवचनसारमां कुंदकुंदस्वामीए प्रसिद्ध कर्यो छे. आ
वस्तुस्वभाव लक्षमां राखीने बधा शास्त्रोनुं तात्पर्य समजवुं जोईए. ज्ञानतत्त्वना
निर्णयपूर्वक ज्ञेयतत्त्वोनुं ज्ञान ते प्रशमनुं एटले के वीतरागी शांतिनुं कारण छे.
वस्तु नित्य–अनित्यस्वरूप अनेकान्तमय छे. ते वस्तु एकला परिणाम जेटली
नथी, तेमज सर्वथा कूटस्थ पण नथी. पोताना ते–ते काळना परिणाम साथे वस्तु
तन्मयपणे परिणमेली छे. नित्य टकवापणुं ने परिणमवापणुं–एवा अनेकान्तस्वभावथी
सत् वस्तु विद्यमान छे.