Atmadharma magazine - Ank 371
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: द्वि. भाद्र : २५०० आत्मधर्म : २१ :
पोताना रागपरिणाम के ज्ञानपरिणाम, –ते आत्मवस्तुथी जुदा नथी. परिणाम
क्यांक, ने वस्तु क््यांक–एम भिन्नपणुं द्रव्यथी–क्षेत्रथी–काळथी के भावथी जोवामां
आवतुं नथी. ते–ते काळना परिणामनो आधार वस्तु छे, बीजुं कोई नहि.
रागपरिणाम के वीतरागपरिणाम तेनो आधार आत्मवस्तु छे. तेनो आधार कांई कर्म
के शरीरादि नथी.
परिणाम छे ते कार्य छे; ते कार्य, कारण वगर होतुं नथी.–ते कारण कोण? के
वस्तु पोते ते काळे ते कार्यनुं कारण छे, बीजुं कोई कारण नथी. बीजानुं विद्यमानपणुं
बीजामां छे, आ कार्यमां (सम्यक्त्वमां के मिथ्यात्वमां) बीजानुं विद्यमानपणुं नथी;
बीजाथी तेने अत्यंत जुदाई छे.
जुओ, आ वस्तुस्वरूपनो महान सिद्धांत छे. केवळी–श्रुतकेवळी भगवानना
सान्निध्यमां एक जीव क्षायिकसम्यक्त्व पाम्यो; त्यां ते जीवना क्षायिकसम्यक्त्वनो
आधार कोण छे?–के जेनां ते परिणाम छे ते ज तेनो आधार छे. ते क्षायिकसम्यक्त्वरूपे
आ आत्मा पोते परिणम्यो छे, एटले तेनुं कारण ने तेनो आधार आ आत्मा छे, बीजा
केवळी के श्रुतकेवळी आ परिणामना आधार के कारण नथी. तेमज, मिथ्यात्वपरिणामे
परिणमनार जीवमां पण, ते परिणामनो आधार ते जीव पोते ते काळे छे, कर्म के बीजुं
कोई तेनो आधार नथी. भाई, तारा परिणामनुं कारण तारामां छे, बीजामां नथी, माटे
परिणाम साथे तारे तारी स्ववस्तु जोवानी रही, तारा परिणाम माटे तारे बीजा सामे
जोवानी पराधीनता न रही.
वाह रे वाह! जुओ आ भगवाननो स्वाधीन मार्ग!–स्वाधीनतानो आ सिद्धांत
जगतना बधा जड–चेतन पदार्थोमां, तेमज शुद्ध–अशुद्ध परिणामोमां लागु पडे छे. एक
सिद्धांत बराबर समजे तो उपादान–निमित्तनो, कारण–कार्यनो, निश्चय–व्यवहारनो के
वस्तुना क्रमबद्ध–नियमित परिणामनी स्वतंत्रतानो;–ए बधाय खुलासा आवी जाय छे.
कर्मथी जीवनां अशुद्धपरिणाम थाय, के देव–गुरुना आधारे आ जीवनां धर्मपरिणाम
थाय, एम जोवामां आवतुं नथी. जीवनां ते–ते काळनां परिणाम (अशुद्ध के शुद्ध ते)
कर्मथी ने देव–गुरुथी तो जुदा ज जोवामां आवे छे, पण पोतानी आत्मवस्तुथी पोताना
ते–ते काळना परिणाम भिन्न जोवामां आवतां नथी. वस्तुना परिणामने वस्तु साथे
संबंध छे, परसाथे संबंध नथी. सूक्ष्म भेद पाडतां द्रव्य ते द्रव्य छे, पर्याय ते पर्याय छे,
–पण ते द्रव्य ने पर्याय बंने धर्मो एक वस्तुमां समाय छे,