Atmadharma magazine - Ank 371
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: द्वि. भाद्र : २५०० आत्मधर्म : २३ :
श्रावकनां आचार
जैन सद्गृहस्थ श्रावकनुं जीवन केवा सुंदर धार्मिक आचारथी
शोभतुं होय छे–तेनुं आ वर्णन छे. तेमां मूळ कर्तव्यरूप सम्यक्त्वनो
महिमा, तथा तेने माटे साचा देव–गुरु–शास्त्रना स्वरूपनी
ओळखाण केवी होय, अने सम्यग्दर्शन उपरांत तेने अहिंसादि व्रतो
केवां होय छे तेनुं वर्णन गतांकमां आपे वांच्युं; बाकीनो भाग आ
लेखमां पूरो थाय छे. (–सं.)
[सकलकीर्ति–श्रावकाचार, अध्याय १५]
(पंदरमा अधिकारना प्रारंभमां पंदरमा जिनने नमस्कार कर्या छे.)
ब्रह्मचर्य नामना चोथा अणुव्रतधारी श्रावकने परस्त्रीनो सर्वथा त्याग होय छे.
पोतानी स्त्री सिवाय अन्य समस्त स्त्रीओने जे माता समान जुए छे तेने स्थूळ–
ब्रह्मचर्य होय छे. आ ब्रह्मचर्यसेवन करीने जीवे विषयोथी विरक्त थवुं जोईए. विषयो
किंपाक फळ जेवा दुःखदायक छे. बुद्धिमान पुरुषोए पर स्त्रीनो एक क्षण पण संसर्ग न
करवो जोईए. अरे, आ लोकमां प्राणने हरनारी एवी क्रोधित सर्पिणीने आलिंगन
करवुं सारूं पण बंने लोकने प्राणने हरनारी एवी क्रोधित सर्पिणीने आलिंगन करवुं
सारूं पण बंने लोकने बगाडनार परस्त्रीने आलिंगन करवुं ते सारूं नथी; ए महा निंद्य
काम छे, अने दुःख देनार छे. मूर्ख लोकोने परस्त्रीनी तो प्राप्ति होय के न होय पण
परस्त्रीनी ईच्छा अने चिंताथी ज तेने महान पाप लागी जाय छे; तेने सदा मरणनी
आशंका रह्या करे छे. ते मूर्खनी बुद्धि नष्ट थई जवाने कारणे, परस्त्रीसेवनमां दुःख
होवा छतां तेने तेमां सुख लागे छे. एनुं चित्त सदा कलुष रह्या करे छे. अरेरे!
विषयोमां मग्न जीवने तो शांति क््यांथी होय? परस्त्रीसेवनना पापथी ते पापी जीवने
तो नरकमां अग्निथी धगधगती लालचोळ लोढानी पूतळी साथे बाथ भीडवी पडे छे,
तेथी ते बळी जाय छे ने महा दुःख पामे छे.
विषयोना सेवनथी कामाग्नि कदी शांत नथी थतो, ए तो ब्रह्मचर्यरूपी शीतळ