Atmadharma magazine - Ank 371
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: द्वि. भाद्र : २५०० आत्मधर्म : ३१ :
हे मुमुक्षु! प्रथम तुं ए जाणी ले के –
तारा संसार – मोक्षनो कर्ता कोण छे?
(तुं पोते? – के कोई बीजो?)
तारा संसारनो के मोक्षनो कर्ता एकलो तुं ज छो;
संसारमां के मोक्षमां तारो कर्ता बीजो कोई नथी.
अरिहंत भगवाने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रने मोक्षमार्ग कह्यो छे,–
–ए वात तो जैनशासनमां सर्वत्र प्रसिद्ध छे.
हवे, आत्मा पोते ज्यारे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रभावे परिणमे छे त्यारे ते
पोताना मोक्षनो कर्ता थाय छे.
अने, ज्यारे सम्यक्त्वादिरूपे न परिणमतां, अज्ञानथी ते मिथ्यात्वादिरूपे
परिणमे छे त्यारे ते पोताना संसारनो कर्ता छे.
–संसार अने मोक्ष बंनेमां पोतानुं–आवुं स्वाधीन–कर्तापणुं जाणनार जीव, पर
साथेना एकत्वनो अध्यास छोडीने, पोताना आत्माना एकत्वने अनुभवतो थको,
स्वाधीनपणे पोताना मोक्षनो ज कर्ता थाय छे, ने संसारना कर्तृत्वने छोडे छे.
प्रवचनसार गाथा १२६ मां आचार्यदेवे ए वात सरस समजावी छे; मोक्षमार्गमां
प्रवेशेलो मुमुक्षु आत्मा जाणे छे के–
• ज्यो हुं संसारी हतो त्यारे पण खरेखर मारुं कोई पण न हतुं. त्यारे पण हुं
एकलो ज मारा मलिन चैतन्यभाव वडे कर्ता–साधनादि थईने, स्वभावसुखथी
विपरीत एवा दुःखफळने उपजावतो हतो....तेमां बीजुं कोई मारुं संबंधी न
हतुं.
• अने हवे वळी, साधकदशामां जेने सुविशुद्ध सहज स्वपरिणति प्रगट थई छे
एवो हुं एकांते मुमुक्षु छुं; अत्यारे आ मुमुक्षु–साधक–ज्ञानदशामां पण हुं एकलो
ज मारा विशुद्ध–चैतन्यभाव वडे कर्ता–साधनादि थईने, हुं एकलो ज मारा
स्वभाव वडे अनाकुळ सुखफळने उपजावुं छुं.