Atmadharma magazine - Ank 371
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : द्वि. भाद्र : २५००
अनुभूति सर्वे विकल्पोथी पार एक शुद्ध चैतन्यमात्र छे. आवा आत्माने अनुभवीने
धर्मी कहे छे के हुं एक छुं, हुं शुद्ध छुं. एकपणुं–शुद्धपणुं एवा भेदो पण कांई अनुभवमां
नथी रहेता, पण समजाववुं कई रीते? पर्याये अंतर्मुख थईने आत्माना एकत्वनो
अनुभव कर्यो त्यां पर्यायना भेदो रहेता नथी, कारकना भेदो रहेता नथी, शुद्ध चैतन्यनी
अनुभूतिमात्र एक स्वभाव ज रहे छे. भेद ते अशुद्धता छे; शुद्धना अनुभवमां भेद
रहेता नथी. एक कहो, शुद्ध कहो, ध्रुव कहो–ते बधुं अभेद छे. मारी आत्मअनुभूतिमां
आनंदनो नाथ डोले छे, जेना अनुभवमां आनंदनाथ हैयात नथी तेनी परिणति
दुःखायेली छे.–ते दुःखी छे. धर्मी कहे छे–अमारो आनंदनो नाथ अमारी अनुभूतिमां
जीवंत छे–हयात छे, अमारे दुःख केवुं? आनंदनो नाथ साक्षात् बिराजे छे त्यां
अनुभूति पण आनंदरूप वर्ते छे. अनुभूतिमां जे आनंद थयो एवा अनंत आनंदनो
आखो पिंड अमारो आत्मा छे. आवा आत्माने अनुभवमां लीधो त्यां क्रोधादि सर्वे
परभावो बहार रही गया, छूटी गया, जुदा पडी गया. परिणति तो अंदर ऊंडे चैतन्य–
पाताळमां ऊतरी गई, त्यां बहारना कोई विकल्पो तेनुं साधन नथी, ते तो बहार रही
जाय छे. परिणतिए अंतरमां ऊतरीने चैतन्यभावने अनुभवमां लीधो एटले आत्मा
अंतरात्मा थयो, अहा, मारी अनुभूति तो महा आनंदमय छे, ने क्रोधादि आस्रवोनुं
वेदन तो एकलुं दुःखरूप छे. क््यां आ चैतन्य–अनुभूतिनो आनंदने क््यां आस्रवोनी
आकुळतानुं दुःख!–ए बंनेने कांई लागतुं–वळगतुं नथी, बंनेने कर्ताकर्मपणुं नथी. आम
नक्की करीने आस्रवोथी जुदो पडे छे ने पोताना निर्विकल्प विज्ञानघनस्वरूपमां ठरे छे,–
आ रीते आत्मा आस्रवोथी छूटे छे. आनुं नाम मोक्षमार्ग छे, आनुं नाम संवर–धर्म छे.
जुओ, आ परमात्मानां कहेण आव्या छे! तारा आत्मानी लगनी माटे, तेमां
उपयोगना जोडाण माटे, आ परमात्मानां कहेण होंशथी स्वीकारी ले....एटले स्वभाव
साथे लगनथी तने अनंत गुणना करियावर सहित मोक्षपरिणति प्राप्त थशे.
चैतन्यने अनुभवनार धर्मीजीव क्रोधादि कोईपण परभावनो स्वामी थतो नथी,
तेनाथी जुदो ने जुदो चेतनारूप ज परिणमे छे; माटे धर्मीजीव परभावोना स्वामीत्व
रहित निर्ममभावरूपे परिणमे छे. चैतन्यनी अनुभूतिमां समस्त परभावोथी भिन्नता
थई, एटलुं तेनुं स्वामीपणुं न रह्युं–ए ज निर्ममत्व छे. क्रोधादि परिणमन कदाचित हो,
पण धर्मीनी चेतना तेनाथी जुदी ज छे; चेतना कर्ता ने क्रोध तेनुं कार्य–एवुं स्वामीपणुं
धर्मीने अंशमात्र नथी. एक विकल्पमात्रनो पण हुं कर्ता छुं–एम चेतनामां जे विकल्पनुं