Atmadharma magazine - Ank 371
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : द्वि भाद्र : २५००
धर्मीना अंतरमां आनंदनो उत्सव
[धर्मात्माने वर्तती शुद्ध धर्मपरिणति ते मोक्षनो हीरक महोत्सव छे]
शुद्धोपयोगरूप वीतरागी उपशांतरसनी जे आनंदधारा
श्रावण वद बीजना मंगल प्रवचनमां गुरुदेवे वहेवडावी, तेनो
स्वाद आप आ प्रवचन द्वारा चाखशो. मोक्षना महान उत्सवरूप
हीरकजयंती तो धर्मात्मा पोताना अंतरमां उजवी रह्या छे...त्यां
आनंदना अतीन्द्रिय वाजां वागे छे. भेदज्ञाननी वीजळी चमके छे,
सम्यक्त्वनो धर्मध्वज फरकी रह्यो छे, वैराग्यरसनी मधुरी अमीवृष्टि
थई रही छे, चारित्रभावनानां मंगल तोरण बंधाया छे. अहाहा,
केवो सुंदर छे धर्मात्माना अंतरनो महोत्सव!–आवा धर्मात्माना
मंगल उत्सवमां भाग लेतां कोने आनंद न थाय ? मोक्षने
साधवाना आवा मंगल उत्सवमां भाग लेतां मुमुक्षुहैयुं
आनंदरसतरबोळ बने छे....ने गुरुदेव प्रवचनमां पण आनंदरसना
धोध वहेवडावीने श्रोताजनोने ते आनंदरसनुं पान करावेे छे.
आवो. ....आप पण आनंदरसनुं पान करो... (–सं.)
आ प्रवचनसारनी ११ मी गाथामां धर्मपरिणत जीवनी वात छे. जेणे
अनुभूतिमां रागथी भिन्न चैतन्यतत्त्वने अनुभव्युं छे एटले राग वगरना शुद्धोपयोग–
धर्मरूपे जे परिणमी रह्यो छे ते जीव, जो राग वगरना पूर्ण शुद्ध उपयोगरूप वर्ते तो
मोक्षसुखने पामे छे. ने ते ज धर्मपरिणतिवाळो जीव जो शुभरागसहित होय तो
स्वर्गसुखने पामे छे;–मोक्ष नथी पामतो; माटे शुभराग हेय छे, ने शुद्धउपयोग ज
उपादेय छे.
अहीं एकला शुभरागवाळानी वात नथी, पण शुद्धोपयोग–सहित धर्मरूपे जे
परिणम्यो छे एवा मोक्षमार्गी जीवनी वात छे. ने तेने पण जे शुभराग छे ते