Atmadharma magazine - Ank 372
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 10 of 53

background image
: आसो : २५०० आत्मधर्म : ७ :
[भगवान महावीरना जीवननो आ संक्षिप्त परिचय तेम ज बीजा उपयोगी
लेखोनो संग्रह ‘भगवान महावीर’ नामनी पुस्तिकारूपे छपायेल छे; तेनी एकसो प्रत
मात्र पंदर रूपियामां घेर बेठा मळी शके छे. तो सेंकडो–हजारोनी संख्यामां ते पुस्तिका
मंगावीने दीवाळीप्रसंगे उत्तम लाणी करो. बाळकोने पेंडा करतां आ पुस्तक वधु गमशे.
दीवाळीना अभिनंदन तरीके मोकलाता लौकिक कार्ड, फोल्डर्सने बदले आ पुस्तिका
मोकलवानुं जिज्ञासुओने वधु गमशे. पांच पुस्तिका एक साथे मोकलवानुं पोस्टेज खर्च
(प्रीन्टेड बुक तरीके) मात्र दश पैसा लागे छे.
[मंगाववानुं सरनामुं: जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट, सोनगढ (सौराष्ट्र)]
बोध वचन
(श्रीमद् राजचंद्रजीए १७ वर्ष पहेलांंनी नानी वयमां १२५ बोधवचनो
लखेलां छे; ते हमणां अमदावाद–मुकामे गुरुदेवना वांचवामां आव्या. तेमांथी
नीचेना बोल विशेष उपयोगी होवाथी अहीं आपवामां आवे छे. (श्रीमद्
राजचंद्रना पुस्तकनी बीजी आवृत्ति जे ई. स. १९६४ मां प्रसिद्ध थयेल छे तेमां
आ लखाण छे.)
स्वद्रव्य अन्यद्रव्यने भिन्न–भिन्न जुओ.
स्वद्रव्यना रक्षक त्वराथी थाओ.
स्वद्रव्यना व्यापक त्वराथी थाओ.
स्वद्रव्यना धारक त्वराथी थाओ.
स्वद्रव्यना रमक त्वराथी थाओ.
स्वद्रव्यना ग्राहक त्वराथी थाओ.
स्वद्रव्यनी रक्षकता उपर लक्ष राखो.
परद्रव्यनी धारकता त्वराथी तजो.
परद्रव्यनी रमणता त्वराथी तजो.
परद्रव्यनी ग्राहकता त्वराथी तजो.
परभावथी विरक्त था.