प्रभुने आहारदान कर्युं.
प्रभुए केवळज्ञान प्रगट कर्युं. ए अरहंतभगवान राजगृहना विपुलाचल पर पधार्या.
६६ दिवस बाद, अषाड वद एकमथी दिव्यध्वनि द्वारा धर्मामृतनी वर्षा शरू थई; ते
झीलीने ईन्द्रभूति–गौतम वगेरे अनेक जीवो प्रतिबोध पाम्या. वीरनाथनी धर्मसभामां
७०० तो केवळी भगवंतो हता; कुल १४००० मुनिवरो ने ३६००० अर्जिकाओ हता;
एक लाख श्रावको ने त्रण लाख श्राविकाओ हता. असंख्यदेवो ने संख्यात तिर्थंचो हता.
त्रीसवर्ष सुधी लाखो–करोडो जीवोने प्रतिबोधीने महावीरप्रभुजी पावापुरी नगरीमां
पधार्या; त्यांना उद्यानमां योगनिरोध करीने बिराजमान थया, ने आसोवद अमासना
परोढिये परम सिद्धपदने पामी सिद्धालयमां जई बिराज्या. ते सिद्धप्रभुने नमस्कार हो.
उपदेश पण एम ज करी, निर्वृत्त थया; नमुं तेमने.
श्रमणे–जिनो–तीर्थंकरो ए रीते सेवी मार्गने,
सिद्धि वर्या, नमुं तेमने, निर्वाणना ते मार्गने.
जीवोने भगवानना मोक्षना आनंदकारी समाचार मळी गया हता. देवेन्द्रो अने
नरेन्द्रोए भगवानना मोक्षनो मोटो महोत्सव कर्यो; ने ए अंधारी रात करोडो दीपकोथी
झगमगी ऊठी. करोडो दीपनी आवलीथी उजवायेलो ए निर्वाणमहोत्सव दीपावली पर्व
तरीके भारतभरमां प्रसिद्ध थयो...ने ईस्वीसननी पहेलांं ५२७ वर्ष पूर्वे बनेलो ए
कल्याणक प्रसंग आजेय आपणे सौ दीपावली–पर्व तरीके आनंदथी ऊजवीए छीए.
दीपावली ए भारतनुं सर्वमान्य आनंदकारी धार्मिक पर्व छे. आवा आ दीपावली
पर्वना मंगल प्रसंगे वीरप्रभुनी आत्मसाधनाने याद करीने आपणे पण ए वीरमार्गे
संचरीए ने आत्मामां रत्नत्रयदीवडा प्रगटावीने अपूर्व दीपावलीपर्व ऊजवीए.