Atmadharma magazine - Ank 372
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : आसो : २५००
कौशम्बीनगरीमां सती चन्दनबाळा बेडीथी बंधायेली हती; त्यारे मुनिराज
महावीर–प्रभुनां दर्शन थतां ज एनी बेडीनां बंधन तूटी गया, ने परमभक्तिथी तेणे
प्रभुने आहारदान कर्युं.
साडाबार वर्ष मुनिदशामां रहीने, वैशाख सुद दसमना रोज, सम्मेदशिखरजी
तीर्थथी दशेक माईल दूर जाृम्भिक गामनी ऋजुकूला सरिताना किनारे क्षपकश्रेणी मांडीने
प्रभुए केवळज्ञान प्रगट कर्युं. ए अरहंतभगवान राजगृहना विपुलाचल पर पधार्या.
६६ दिवस बाद, अषाड वद एकमथी दिव्यध्वनि द्वारा धर्मामृतनी वर्षा शरू थई; ते
झीलीने ईन्द्रभूति–गौतम वगेरे अनेक जीवो प्रतिबोध पाम्या. वीरनाथनी धर्मसभामां
७०० तो केवळी भगवंतो हता; कुल १४००० मुनिवरो ने ३६००० अर्जिकाओ हता;
एक लाख श्रावको ने त्रण लाख श्राविकाओ हता. असंख्यदेवो ने संख्यात तिर्थंचो हता.
त्रीसवर्ष सुधी लाखो–करोडो जीवोने प्रतिबोधीने महावीरप्रभुजी पावापुरी नगरीमां
पधार्या; त्यांना उद्यानमां योगनिरोध करीने बिराजमान थया, ने आसोवद अमासना
परोढिये परम सिद्धपदने पामी सिद्धालयमां जई बिराज्या. ते सिद्धप्रभुने नमस्कार हो.
अर्हंत सौ कर्मोतणो, करी नाश ए ज विधि वडे,
उपदेश पण एम ज करी, निर्वृत्त थया; नमुं तेमने.
श्रमणे–जिनो–तीर्थंकरो ए रीते सेवी मार्गने,
सिद्धि वर्या, नमुं तेमने, निर्वाणना ते मार्गने.
भगवान महावीरे ज्यारे मोक्षगमन कर्युं त्यारे आसो वद १४ नी अंधारी रात
होवा छतां सर्वत्र एक चमत्कारिक दिव्य प्रकाश फेलाई गयो हतो, अने त्रण लोकना
जीवोने भगवानना मोक्षना आनंदकारी समाचार मळी गया हता. देवेन्द्रो अने
नरेन्द्रोए भगवानना मोक्षनो मोटो महोत्सव कर्यो; ने ए अंधारी रात करोडो दीपकोथी
झगमगी ऊठी. करोडो दीपनी आवलीथी उजवायेलो ए निर्वाणमहोत्सव दीपावली पर्व
तरीके भारतभरमां प्रसिद्ध थयो...ने ईस्वीसननी पहेलांं ५२७ वर्ष पूर्वे बनेलो ए
कल्याणक प्रसंग आजेय आपणे सौ दीपावली–पर्व तरीके आनंदथी ऊजवीए छीए.
दीपावली ए भारतनुं सर्वमान्य आनंदकारी धार्मिक पर्व छे. आवा आ दीपावली
पर्वना मंगल प्रसंगे वीरप्रभुनी आत्मसाधनाने याद करीने आपणे पण ए वीरमार्गे
संचरीए ने आत्मामां रत्नत्रयदीवडा प्रगटावीने अपूर्व दीपावलीपर्व ऊजवीए.