Atmadharma magazine - Ank 372
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २५०० आत्मधर्म : ५ :
थयो. रौद्ररसने बदले तुरत ज शांतरस प्रगट कर्यो ने ते सम्यक्त्व पाम्यो....एटलुं ज
नहि, तेणे निराहारव्रत अंगीकार कर्युं. अहा, सिंहनी शूर–वीरता सफळ थई. शास्त्रकार
कहे छे के ए वखते वैराग्यथी तेणे एवुं घोर पराक्रम प्रगट कर्युं के जो तिर्यंचगतिमां
मोक्ष होत तो जरूर ते मोक्ष पाम्यो होत! ते सिंहपर्यायमां समाधिमरण करीने सिंहकेतु
नामनो देव थयो.
त्यांथी घातकीखंडना विदेहक्षेत्रमां कनकोज्वल नामनो राजपुत्र थयो; हवे धर्म–
द्वारा ते जीव मोक्षनी नजीक पहोंची रह्यो हतो. त्यां वैराग्यथी संयम लई सातमा
स्वर्गमां गयो. त्यांथी साकेतपुरी (अयोध्या) मां हरिसेन राजा थयो ने पछी संयमी
थईने स्वर्गमां गयो.
त्यांथी घातकीखंडमां पूर्वविदेहनी पुंडरीकिणीनगरीमां प्रियमित्र नामनो चक्रवर्ती
राजा थयो; क्षेमंकर तीर्थंकर समीप दीक्षा लीधी ने सहस्त्रार स्वर्गमां सूर्यप्रभ–देव थयो.
त्यांथी जंबुद्वीपना छत्रपुरनगरमां नंदराजा थयो; तेणे दीक्षा लई, उत्तम संयम पाळी,
१२ अंगनुं ज्ञान प्रगट करी, दर्शनशुद्धि वगेरे १६ भावना वडे तीर्थंकरनामकर्म बांध्युं ने
संसारनो छेद कर्यो; उत्तम आराधना सहित मरीने अच्युतस्वर्गना पुष्पोत्तरविमानमां
ईन्द्र थयो.
अषाड सुद छठ्ठे त्यांथी चवीने महावीरनो ए महान आत्मा, भरतक्षेत्रमां
वैशाली–कुंडपुरना महाराजा सिद्धार्थने त्यां अंतिम तीर्थंकरपणे अवतर्यो...प्रिय–
कारिणीमाताना ए वर्द्धमानपुत्रे चैत्र सुद तेरसे आ संसारना जन्मोनो अंत कर्यो.
एकवार वर्द्धमान बालतीर्थंकरने देखतां ज संजय ने विजय नामना मुनिओनो
सूक्ष्म संदेह दूर थयो, तेथी प्रसन्नताथी तेओए तेमने ‘सन्मतिनाथ’ नाम आप्युं.
एकवार संगम नामना देवे भयंकर सर्पनुं रूप धारण करीने ए बाळकनी
निर्भयतानी ने वीरतानी परीक्षा करी, अने भक्तिथी ‘महावीर’ नाम आप्युं.
त्रीस वर्षना कुमारकाळमां तो एमने जातिस्मरण थयुं ने संसारथी विरक्त
थईने (गुजराती कारतक वद दशमे) स्वयं दीक्षित थया. तेमने उत्तम खीरवडे प्रथम
आहारदान कूलपाकनगरीना राजाए कर्युं.
उज्जैननगरीना वनमां रूद्रे तेमना पर घोर उपद्रव कर्यो, पण ए वीर मुनिराज
ध्यानथी जरापण न डग्या ते न डग्या...तेथी नम्रीभूत थईने रूद्रे स्तुति करी ने
‘अतिवीर’ (महाति–महावीर) एवुं नाम आप्युं.