Atmadharma magazine - Ank 372
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : आसो : २५००
[साक्षात् मोक्षमार्गना साररूप वीतरागता जयवंत वर्तो]
–तेथी न करवो राग जरीये क्यांय पण मोक्षेच्छुए,
वीतराग थईने ए रीते ते भव्य भवसागर तरे.
श्री पंचास्तिकायनी आ १७२ मी गाथामां बतावेला
वीतरागी मोक्षमार्ग प्रत्येना प्रमोदपूर्वक “स्वस्ति साक्षात्
मोक्षमार्ग...” एम कहीने आचार्यदेव आशीर्वाद आपे छे के हे भव्य
जीवो! महावीर भगवाने वीतरागभावरूप मोक्षमार्ग वडे मोक्षने
साध्यो, ने तमे पण ए ज मार्गने आराधो.–मोक्षमार्गनो आवो
मंगल सन्देश गुरुदेवे (वीर. सं. २४९४ मां) बेसतावर्षनी
बोणीमां आप्यो हतो.
वीतरागभावरूप मोक्षमार्गनी आराधना करवी ते मोक्षनो खरो उत्सव छे.
भगवानना मोक्षनो उत्सव कोण उजवे? जे मोक्षार्थी होय ते; ते मोक्षार्थी जीव कई रीते
निर्वाण पामे छे? साक्षात् मोक्षनो अभिलाषी भव्यजीव अत्यंत वीतरागता वडे
भवसागरने तरी जईने, शुद्धस्वरूप परमअमृतसमुद्रने अवगाहीने शीघ्र निर्वाणने पामे छे.
जुओ, आजे भगवानना निर्वाणना दिवसे निर्वाण पामवानी वात आवी छे.
भगवान महावीर मोक्षार्थी थईने चिदानंदस्वरूपनुं भान करीने तेमां लीनतावडे
वीतराग थया, ए रीते रागद्वेषमोहरूप भवसागरथी पार थईने, परम आनंदना
सागर एवा पोताना शुद्धस्वरूपमां निमग्न थईने निर्वाण पाम्या; ने निर्वाणनो आवो
ज मार्ग भगवाने भव्यजीवोने बताव्यो; हे भव्य जीवो! साक्षात् वीतरागता ज
मोक्षमार्ग छे, तेना वडे ज मोक्षेच्छु भव्यजीवो भवसागरने तरीने निर्वाणने पामे छे.
आखा शास्त्रनुं एटले के जैनशासननुं तात्पर्य आचार्यभगवाने आ सूत्रमां
बताव्युं छे. भव्यजीवो कई रीते भवसागरने तरे छे?–के वीतरागता वडे; बस!
वीतरागता ते ज समस्त शास्त्रनुं तात्पर्य छे, ते ज शास्त्रनुं हार्द छे. क््यांय पण
जरीकेय राग राखीने तरातुं नथी. पण सघळी वस्तु प्रत्येना समस्त रागने छोडीने,
अत्यंत वीतराग थईने चैतन्यस्वरूपमां लीनतावडे ज भवसागरने तराय छे.