तेओए बीजा मुमुक्षु जीवोने पण ए वीतरागतानो ज उपदेश आप्यो छे. आम कहीने
आवा साक्षात् मोक्षमार्ग प्रत्येना प्रमोदथी आचार्यदेव कहे छे के अहो! जयवंत वर्तो
मोक्षमार्गना साररूप वीतरागता जयवंत वर्तो! आवो मोक्षमार्ग जयवंत वर्तो! ने तेना
वडे थयेली आत्मउपलब्धि जयवंत वर्तो.
मोक्षने साध्यो, अने आ ज रीते तेनो उपदेश कर्यो; माटे नक्की थाय छे के आ ज एक
निर्वाणनो मार्ग छे, बीजो कोई निर्वाणनो मार्ग नथी. आ रीते निर्वाणनो मार्ग नक्की
करीने आचार्यदेव कहे छे के बस, हवे बीजा प्रलापथी बस थाओ. मारी मति व्यवस्थित
थई छे, मोक्षमार्गनुं कार्य सधाय छे. आवो मोक्षमार्ग दर्शावनारा भगवंतोने नमस्कार हो.–
उपदेश पण एम ज करी निर्वृत्त थया, नमुं तेमने. (प्रव
वीतरागता ज छे, एटले के मोक्षमार्गमां पहेलेथी छेल्ले सुधी (शरूआतथी पूर्णता
सुधी) जे वीतरागता छे ते ज मोक्षमार्ग छे; मोक्षमार्ग तरीके वीतरागता ज जयवंत
वर्ते छे; रागनो तो मोक्षमार्गमांथी क्षय थतो जाय छे. आवा वीतरागभावरूप साक्षात्
मोक्षमार्गने जाणीने तेने आराधवो ते महा मांगळिक छे.
महोत्सव कर्यो ने तेणे सन्तो पासेथी साची बोणी अने आशीर्वाद मेळव्या; भगवान
महावीर जे मार्गे मोक्ष पधार्या ते ज मार्गे ते जाय छे.–
सिद्धि वर्या, नमुं तेमने; निर्वाणना ते मार्गने.