Atmadharma magazine - Ank 372
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : आसो : २५००
दसलक्षणी – पर्युषणपर्वनी मंगल प्रसादी
श्री अरिहंत आपणा देव छे
तेमना आत्माने ओळखतां सम्यक्त्व थाय छे
सोनगढमां हमणां दसलक्षणीपर्युषण दरमियान पू.
गुरुदेवना जे सम्यक्त्वप्रेरक अपूर्व प्रवचनो थया ते अहीं
वांचतां मुमुक्षु साधर्मीओ आनन्दित थशे. प्रवचनसारनी ८०
मी गाथामां सम्यग्दर्शन प्रगट करवानो उपाय देखाडतां आचार्य
श्री कुंदकुंदस्वामी कहे छे के अरे जीव! तुं जिन–परमेश्वरने लक्षमां
तो ले. अहो! जैन–परमेश्वर एटले आपणा अरिहंत–परमात्मा
देव! तेमना महिमानी शी वात! जेमनामां अक्षय–अमेय पूर्ण
आनंद भरेलो छे, जेमनामां राग–द्वेषनो लवलेश नथी, अने
जेमनामां एकलो परम शांत चैतन्यभाव परिपूर्ण परिणमी
रह्यो छे–एवा महान सर्वज्ञस्वरूपी भगवाननो स्वीकार करनारुं
तारुं ज्ञान पण केटलुं महान छे?–ते जो. ते ज्ञान पण रागथी जुदुं
पडीने अतीन्द्रिय थई जाय छे, अने ते पोताना
सर्वज्ञस्वभावनो पण निश्चय करी ल्ये छे.–आ रीते ते ज्ञान
अरिहंतोनी पंक्तिमां बेसी जाय छे ने रागथी जुदुं थईने
मोक्षमार्गमां चालवा मांडे छे.
जुओ, आ महावीरनो मार्ग! भगवान महावीरने
सर्वज्ञ स्वरूप जे बराबर ओळखे तेने तो आत्माना
शुद्धस्वरूपनी ओळखाण थईने भेदज्ञान तथा सम्यग्दर्शन थई
जाय छे.–जेणे आवी दशा प्रगट करी तेणे पोताना आत्मामां
मोक्षना मंगल उत्सवनो प्रारंभ कर्यो; ते ज साचो आनंदमय
निर्वाण–महोत्सव छे.