Atmadharma magazine - Ank 372
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २५०० आत्मधर्म : ११ :
मोहनी सेनाने जीतवानो उपाय शुं छे? तेमां प्रथम दर्शनमोहने जीतीने
सम्यग्दर्शन थवानी रीत शुं छे? ते आ प्रवचनसारनी ८० मी गाथामां आचार्यदेव
अलौकिक रीते बतावे छे–
जे जाणतो अर्हंतने गुण, द्रव्य ने पर्ययपणे,
ते जीव जाणे आत्मने, तसु मोह पामे लय खरे.
अहा, अरिहंतदेव एटले कोण? जेमनी चेतना परिपूर्ण खीली गई छे, राग–
द्वेषनो कोई अंश जेमनामां रह्यो नथी; पूरुं अतीन्द्रियज्ञान ने अतीन्द्रियसुख जेमना
सर्वात्मप्रदेशोमां परिणमी गयुं छे;– आवा शुद्धआत्मा ते अरिहंत छे. तेमना स्वरूपने
ओळखतां शुद्धआत्मानुं स्वरूप ओळखाय छे, एटले रागथी भिन्न पोताना शुद्ध
आत्मानुं स्वरूप पण ओळखाय छे, केमके निश्चयथी अरिहंतना अने आ आत्माना
स्वरूपमां तफावत नथी.
अहीं मोहक्षय करवा माटे ऊपडेलो मुमुक्षु जीव एवो छे के जेणे बीजा बधा
कुमार्ग छोडीने सर्वज्ञ वीतराग एवा अरिहंतदेवने ज ध्येय बनाव्या छे, ने ते
अरिहंतदेवना शुद्ध द्रव्य–गुण–पर्यायने ओळख्या छे;–आ रीते अरिहंतने ओळखीने
त्यां (अरिहंतना लक्षमां) ज अटकी जतो नथी, पण पोताना आत्मा साथे तेनुं
मिलान करीने, तेमना जेवा पोताना आत्मानुं शुद्धस्वरूप ओळखीने पोताना आत्मामां
ढळे छे, ने द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेमां व्यापेली शुद्धचेतनारूपे पोतानो अनुभव करीने
सम्यग्दर्शन पामे छे. त्यां दर्शनमोह जीताई जाय छे.
ज्ञान अने रागनी भिन्नताना अनुभव माटे अहीं ध्येय तरीके अरिहंत–सर्वज्ञ–
देवने लीधा, केमके राग वगरनो एकलो परिपूर्ण चैतन्यभाव तेमने प्रगट छे, तेमना
द्रव्य–गुण चेतनमय छे ने पर्याय पण चेतनमय छे,–आ रीते तेमनो आत्मा सर्व प्रकारे
शुद्धचेतनमय छे, तेने ओळखतां आत्मानुं शुद्धस्वरूप ओळखाय छे, ज्ञानपरिणति
रागथी पार अतीन्द्रिय थईने चेतनमय आत्मानी स्वानुभूति करीने तेमां अंतर्लीन
थई जाय छे, एटले अतीन्द्रिय आनंद सहित सम्यग्दर्शन थाय छे. सर्वे अरिहंतोए
सम्यग्दर्शननी आ ज रीत कही छे. पोते जे रीते मोहनो नाश कर्यो तेनो ज उपदेश
आपणने आप्यो–नमस्कार हो ते अर्हंत भगवंतोने!
रागथी भिन्न चैतन्यतत्त्व ओळखाववुं छे, ने समस्त मोहनो नाश करवो छे,