Atmadharma magazine - Ank 372
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 15 of 53

background image
: १२ : आत्मधर्म : आसो : २५००
तेथी उदाहरणमां सामे पण जेमने अंशमात्र राग के मोह नथी एवा सर्वज्ञ अरिहंतदेव
लीधा छे; बीजा छद्मस्थ–रागवाळा जीवनी वात नथी लीधी. रागी जीवोनी पर्यायमां
राग देखीने अज्ञानीने ज्ञान अने रागनी भिन्नता ओळखाती नथी; पण ज्यां
अरिहंतना आत्माने जाणे त्यां राग वगरनुं शुद्ध चेतनरूप जीवतत्त्व केवुं छे ते तेना
लक्षमां आवी जाय छे ने रागमां क््यांय एकत्वबुद्धि रहेती नथी; त्यां अज्ञाननो नाश
थईने भेदज्ञान ने सम्यक्त्व थई जाय छे.
अरिहंतने ओळखतां राग वगरनुं चैतन्यस्वरूप केवुं छे ते लक्षमां लईने
मुमुक्षुजीव पोताना आत्मानो पण तेवो ज स्वभाव नक्की करी ल्ये छे. अहा,
चेतनस्वभाव आत्मामां सर्वत्र प्रसरेलो छे, द्रव्य चेतन, गुण, चेतन, पर्याय चेतन,
एकला चैतन्यभावनो पिंड आत्मा, तेमां क््यांय राग न समाय. आवा पोताना
स्वरूपने लक्षगत करे त्यां निर्विकल्प अनुभूतिस्वरूप सम्यग्दर्शन थई जाय छे.
पहेलांं ज्ञानमां अरिहंतना आत्मानुं स्वरूप विचारे छे, ने पोताना आत्मा साथे
तेनी मेळवणी करे छे, त्यां सुधी जो के हजी ते ज्ञान साथे भेद–विकल्प पण छे, पण
त्यारेय ज्ञान तो विकल्प वगरना चेतनस्वरूपने नक्की करे छे, एटले तरत ज ते ज्ञान,
पोताना चैतन्यस्वभावनी सम्मुख थईने तेनो सम्यक् अनुभव करे छे, त्यां परलक्षनो
के द्रव्य–गुण–पर्यायना भेदनो विकल्प रहेतो नथी. अज्ञानीने तो अरिहंतना आत्मानी
पण साची ओळखाण नथी. जीव ज्यां अरिहंतना आत्मानुं स्वरूप जाणे त्यां पोताना
आत्मानुं स्वरूप पण परमार्थे तेवुं ज छे–एम पण ते जाणे छे, एटले तेने रागवगरनी
चैतन्यसत्तानो स्वीकार थई जाय छे.
अरे, अरिहंतने ‘केवळज्ञान’ छे,–एम केवळज्ञानना सद्भावनो’ ज्ञानमां
स्वीकार करवा जाय त्यां तो ‘रागना अभावनो स्वीकार थई जाय छे, ज्ञान रागथी जुदुं
पडीने ज्ञानस्वभावमां तन्मय थई जाय छे. केवळज्ञान कहो के आत्मानो ज्ञानस्वभाव
कहो, तेना निर्णयमां तो वीतरागभावनो अतीन्द्रिय पुरुषार्थ छे. रागवडे के
ईन्द्रियज्ञानवडे केवळज्ञाननो निर्णय कदी थई शकतो नथी. शुभरागने के ईन्द्रियोने जे
ज्ञाननुं साधन माने छे तेने पण केवळज्ञाननो निश्चय थई शकतो नथी; केवळज्ञानमां
राग केवो? ने ईन्द्रियनी सहाय केवी? एवा ज्ञाननुं स्वरूप नक्की करतां, पोताना
आत्मानुं ज्ञानस्वरूप पण तेवुं ज, राग ने ईन्द्रियो वगरनुं छे एम जीवने
शुद्धचैतन्यतत्त्व अनुभवमां आवी