Atmadharma magazine - Ank 372
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २५०० आत्मधर्म : १३ :
जाय छे; त्यां मोहनो नाश थईने सम्यग्दर्शन थाय छे...मोक्षना दरवाजा ऊघडी जाय छे.
वाह रे वाह! अरिहंतोनो मार्ग!!
अरिहंतोनो मार्ग ते मोहना नाशनो मार्ग छे एटले आत्माना महान आनंदनी
प्राप्तिनो ते मार्ग छे. अरिहंतना मार्गने जे अनुसरे तेने आत्मानो आनंद मळे ज,
एटले सम्यग्दर्शनादि थाय ज.
वाह, आचार्यदेवे अरिहंतनो नमूनो बतावीने आत्मानुं शुद्धस्वरूप एकदम
स्पष्ट बतावी दीधुं छे. मोहना नाश माटे अरिहंतोने साथे राख्या छे...अहो, अरिहंतो!
तमारा जेवा ज चेतनस्वरूप मारो आत्मा छे; मारा द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेने हुं ज्यां
चेतनस्वरूपे ज देखुं छुं त्यां हवे मोहने मारामां रहेवानुं कोई स्थान ज न रह्युं; चेतन–
भावना आश्रये मोह केम रही शके? एटले चेतनभावरूपे पोताना आत्माने
अनुभवमां लेतां ज मोह निराश्रय थईने नाश पामे छे; केमके मोहने रहेवानो आश्रय
तो मिथ्यात्व अने राग–द्वेष हता, पण कांई चेतनभाव तेनो आश्रय नथी.
चेतनभावमां तो वीतरागता ने परम आनंद छे, तेमां मोह रही शकतो नथी. जुओ,
सम्यग्दर्शन थाय त्यां आवो आत्मा स्पष्ट वेदनमां आवी जाय छे.
अरिहंत कहो के एकलुं ज्ञानतत्त्व कहो, ते परिस्पष्ट छे, सोळवला (सो टचना)
सोना जेवुं शुद्ध छे, पूर्ण छे, तेमां रागादि कोई परभावनी भेळसेळ नथी.–आवुं शुद्ध
ज्ञानतत्त्व जाणतां आत्माना परिपूर्ण शुद्धस्वरूपनुं ज्ञान थई जाय छे. ‘अर्हंत’ एटले
पूज्य; आत्मानुं आवुं शुद्धज्ञानस्वरूप छे ते पूज्य छे, अर्हंतना स्वरूपमां अने तेना
स्वरूपमां कांई फेर नथी.
जुओ, आ महावीर भगवाननो मार्ग! महावीर भगवानने सर्वज्ञस्वरूपे जे
खरेखर ओळखे तेने तो शुद्ध आत्मानी ओळखाण थईने भेदज्ञान अने सम्यग्दर्शन
थई जाय छे. जेणे आवी दशा प्रगट करी तेणे पोताना आत्मामां मोक्षनो मंगल उत्सव
ऊजव्यो; साचो निर्वाण–महोत्सव तेणे महा आनंदपूर्वक शरू कर्यो.
जे जाणतो महावीरने चेतनमयी शुद्धभावथी;
ते जाणतो निजात्मने समकित ल्ये आनंदथी.
अरे जीव! तारा जैन–परमेश्वरने लक्षमां तो ले! अहो, जैनपरमेश्वर तारा
अरिहंत–परमात्मा देव! एना महिमानी शी वात करवी? ज्यां अक्षय–अमाप पूर्ण