एम कह्युं (–जेना सुंदर प्रवचनो आ अंकमां ज आपे वांच्या); हवे अहीं ८६मी
गाथामां पण कहे छे के–जिनशास्त्रोना अभ्यासवडे प्रत्यक्ष–प्रमाणनी मुख्यतापूर्वक
पदार्थोने जाणतां चोक्कस मोहनो क्षय थाय छे; माटे शास्त्र सम्यक्प्रकारे अभ्यासवा
योग्य छे, एटले के शास्त्रमां कहेला जीवादि तत्त्वोनुं सम्यक्स्वरूप जाणवा योग्य छे.–
आ बंने (गा. ८० तथा ८६ नां) कथन एकबीजाना सापेक्ष छे, तेमनामां कोई
विरोध नथी.
छे. अरिहंतभगवानना शुद्ध द्रव्य–गुण–पर्याय चेतनमय छे एम जाणवानुं कह्युं,–हवे ते
जणाय कई रीते? के सर्वज्ञे कहेला आगमना भावश्रुतज्ञानवडे ज शुद्ध द्रव्य–गुण–
पर्यायनुं ज्ञान थाय छे. आवा भावश्रुतज्ञानमां आनंदना तरंग उल्लसे छे, ने ते
ज्ञाननी ताकातथी मोहनो नाश जरूर थाय छे.
स्वरूपनुं पण ज्ञान तेमां आवी ज जाय छे. आ रीते अरिहंतदेवना द्रव्य–गुण–पर्यायनुं
ज्ञान, अने आगमनुं ज्ञान, ए बंने परस्पर सापेक्ष छे, एकनी साथे बीजुं आवी ज
जाय छे.
जोईए,–तो ज तेना भावोनुं साचुं ज्ञान थतां मोहनो नाश थईने अपूर्व मोक्षमार्ग
प्रगटे. माटे आचार्यदेव कहे छे के मोहना नाशने अर्थे सर्वज्ञनी वाणीरूप आगमनो
अभ्यास करवो; कई रीते अभ्यास करवो? के भावश्रुतज्ञानना अवलंबनथी द्रढ करेला
सम्यक् परिणामवडे अभ्यास करवो; भावश्रुतज्ञान अंदरमां ढळे छे, एटले स्वलक्षे जे
जिनवाणीनो अभ्यास करे छे तेने तो शब्दे–शब्दनुं ज्ञान करतां परमआनंदरस झरे छे.
माटे सम्यक् प्रकारे जिनागमनो अभ्यास कर्तव्य छे.