शक्तिरूप संपदा प्रगटे छे; ते सहृदय भावुक जीवना अंतरमां आनंदना उद्भेद
देनारा एवा प्रत्यक्ष प्रमाणवडे, तथा प्रत्यक्षपूर्वकना अनुमान–आगमादि प्रमाणोवडे
स्व–पर समस्त वस्तुनुं स्वरूप जाणतां मोहनो नाश थाय छे. बस, आ छे मोहना
नाशनो उपाय!
तेमां एने कंटाळो के बोजो नथी लागतो पण ज्ञाननी मजा आवे छे एटले क्रीडा करे छे–
एम कह्युं. पहेलांं अज्ञानमां रागनी रमत करतो, हवे जिनागमना अभ्यासवडे ज्ञाननी
रमत मांडी छे; अंदरना वस्तुस्वरूपने जाणवामां श्रुतज्ञानना अनंत पडखां द्वारा नवा–
नवा अद्भुत भावो जागे छे ते श्रुतज्ञाननी केलि छे; एवी ज्ञानक्रीडा वडे मुमुक्षुजीव,
भगवान अरिहंतना द्रव्य–गुण–पर्यायने तथा परमार्थे पोताना आत्माना तेवा
स्वरूपने नक्की करे छे; तेने यथार्थ वस्तुस्वरूप ज्ञानमां आवतांवेंत ज आनंदना संवेदन
सहित प्रत्यक्ष प्रमाणरूप सम्यग्ज्ञान प्रगटे छे; अने मोहनो नाश थई जाय छे.
जिनवचन–अनुसार वस्तुना स्वरूपनुं साचुं ज्ञान थाय त्यां मोह रही शके ज नहि.
भान थईने, द्रव्यमां गुण–पर्यायने अभेद करीने आत्मानो अनुभव थाय छे, त्यां
मोहनो नाश थईने सम्यक्त्व थाय छे. (ए वात ८० मी गाथामां करी.) ए ज रीते
भगवानना आगममां द्रव्य–गुण–पर्यायस्वरूप स्व–पर वस्तुनुं भिन्न भिन्न स्वरूप जेम
कह्युं छे तेम, आत्माना स्व–संवेदनप्रत्यक्ष प्रमाण सहित जाणतां मोहनो जरूर नाश
थाय छे, एटले सम्यग्ज्ञान थाय छे.–तेथी मोहना क्षयने अर्थे मुमुक्षुए भावश्रुतज्ञानना
अवलंबनवडे सम्यक् प्रकारे जिनागमनो अभ्यास कर्तव्य छे. (ए वात ८६ मी गाथामां
करी.)