Atmadharma magazine - Ank 372
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : आसो : २५००
जीवादि वस्तुनुं स्वरूप केवुं कह्युं छे?–के जे जाणवाथी सम्यग्ज्ञान थाय छे, ने मोहनो
नाश थाय छे;– ते वस्तुस्वरूप कहे छे:–
जिनवाणीमां जीव–अजीव पदार्थोने वस्तु अथवा अर्थ कहेल छे. ते वस्तुमां द्रव्य
तथा गुण तथा पर्याय–एवा त्रण संज्ञाभेद छे, पण वस्तुथी त्रणभेद नथी, अर्थात्
अलग–अलग तेओ त्रण वस्तु नथी. जे गुण–पर्यायो छे तेनुं सत्पणुं ते द्रव्य ज छे,
समस्त गुण–पर्यायोनुं एकस्वरूप छे ते द्रव्य ज छे. द्रव्यनुं सत्त्व जुदुं, ने गुण–
पर्यायोनुं सत्त्व जुदुं–एम तेमने भिन्न–सत्त्वपणुं नथी. एक ज सत्त्व पोते द्रव्य–गुण–
पर्याय स्वरूप छे.
–जुओ, आवुं द्रव्य–गुण–पर्यायरूप वस्तुस्वरूप जाणतां मोहनो जरूर नाश
थाय छे.
*
जीवना जे चेतनमय द्रव्य–गुण–पर्यायो छे ते जीवमां ज छे, ते बीजा बधा
पदार्थोना द्रव्य–गुण–पर्यायथी सर्वथा जुदा छे.
* अजीवना जे द्रव्य–गुण–पर्यायो छे ते अजीव ज छे, ते जीवना द्रव्य–गुण–
पर्यायोथी सर्वथा जुदा छे.
–आम स्व–परनो विभाग जाणतां जीव–अजीवमां क््यांय एकत्वबुद्धिनो मोह न
रह्यो, तेमज जीव–अजीव एकबीजाना द्रव्य–गुण–पर्यायमां कांई करे एवी कर्ता–कर्मनी
मिथ्याबुद्धिरूप मोह पण न रह्यो; पोतानुं सत्पणुं, परथी भिन्न पोताना द्रव्य–गुण–
पर्यायमां ज परिपूर्ण देख्युं, त्यां स्वाश्रये सम्यक्त्वादिरूप शुद्ध परिणमन थाय छे, ने
मोह रहेतो नथी.
अनंता जीवो भिन्न भिन्न छे; तेमां दरेकना पोतपोताना द्रव्य–गुण–पर्यायो
पोतपोतामां ज समाय छे; कोईना द्रव्य–गुण–पर्याय बीजामां भळता नथी.–अहो,
वस्तुनी आवी स्वाधीनता वीतरागी जिनवाणी सिवाय बीजुं कोण बतावे?–आवा
स्वाधीन स्वरूपने जाणतां सम्यग्ज्ञान ने वीतरागता थाय छे.–ते जिनवाणीना साचा
अभ्यासनुं फळ छे.
द्रव्य पोताना गुण–पर्यायोथी जुदुं नथी रहेतुं पण तन्मयपणे तेने प्राप्त करे छे–
पहोंची वळे छे–पोते ज तेवा स्वरूपे थईने रहे छे. ए ज रीते गुण–पर्यायो पण
पोताना द्रव्यथी जुदा नथी रहेता पण तन्मयपणे तेने प्राप्त करे छे–पहोंची वळे छे–पोते