नाश थाय छे;– ते वस्तुस्वरूप कहे छे:–
अलग–अलग तेओ त्रण वस्तु नथी. जे गुण–पर्यायो छे तेनुं सत्पणुं ते द्रव्य ज छे,
समस्त गुण–पर्यायोनुं एकस्वरूप छे ते द्रव्य ज छे. द्रव्यनुं सत्त्व जुदुं, ने गुण–
पर्यायोनुं सत्त्व जुदुं–एम तेमने भिन्न–सत्त्वपणुं नथी. एक ज सत्त्व पोते द्रव्य–गुण–
पर्याय स्वरूप छे.
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पदार्थोना द्रव्य–गुण–पर्यायथी सर्वथा जुदा छे.
पर्यायोथी सर्वथा जुदा छे.
–आम स्व–परनो विभाग जाणतां जीव–अजीवमां क््यांय एकत्वबुद्धिनो मोह न
मिथ्याबुद्धिरूप मोह पण न रह्यो; पोतानुं सत्पणुं, परथी भिन्न पोताना द्रव्य–गुण–
पर्यायमां ज परिपूर्ण देख्युं, त्यां स्वाश्रये सम्यक्त्वादिरूप शुद्ध परिणमन थाय छे, ने
मोह रहेतो नथी.
वस्तुनी आवी स्वाधीनता वीतरागी जिनवाणी सिवाय बीजुं कोण बतावे?–आवा
स्वाधीन स्वरूपने जाणतां सम्यग्ज्ञान ने वीतरागता थाय छे.–ते जिनवाणीना साचा
अभ्यासनुं फळ छे.
पोताना द्रव्यथी जुदा नथी रहेता पण तन्मयपणे तेने प्राप्त करे छे–पहोंची वळे छे–पोते