–गुण–पर्यायोमां गुण–पर्यायो स्वकीयद्रव्यथी अभिन्न छे. एटले द्रव्य पोते ज गुण–
पर्यायोस्वरूप सत् छे. वस्तुना द्रव्य–गुण–पर्यायमां क््यांय अन्य द्रव्य–गुण–पर्यायनो
प्रवेश नथी, एटले अन्य उपर राग–द्वेष करवानुं कोई प्रयोजन रहेतुं नथी. आ रीते
आवा वस्तुस्वरूपनी ओळखाणमां भेदज्ञान अने वीतरागता ज झरे छे.
अहो, जिनेश्वरदेवना आवा वीतरागी उपदेशनी प्राप्ति महा भाग्यथी थाय छे.
वस्तुस्वरूप देखाडनार भगवाननो आ उपदेश मोह–राग–द्वेषने हणवा माटे तीक्ष्ण
ते जीव पामे अल्पकाळे सर्वदुःखविमोक्षने. ८८.
मोहनो नाश करी शके. पण जेनी मान्यता ज जिनोपदेशथी विपरीत होय, एक
वस्तुना द्रव्य–गुण–पर्यायने बीजी वस्तुमां जे भेळवी देतो होय, अथवा एक ज वस्तुना
स्वद्रव्य–गुण–पर्यायने भिन्न–भिन्न मानतो होय, ते तो जिनउपदेशने पाम्यो ज नथी, ते
तो पर साथे एकत्वबुद्धिथी मोह तथा राग–द्वेषने करे छे, एटले ते मोहने हणी शकतो
नथी; तेने तो मोह साथे मित्रता छे.
एकता छे; मारा गुण–पर्यायोमां तन्मयरूपे हुं ज वर्तुं छुं. मारी पर्यायमां जे चैतन्यपणुं
संवेदनमां आवे छे तेनो संबंध (एकता) मारा आत्मा साथे छे, एम स्वकीय
चैतन्यलक्षणवडे धर्मीजीव पोताना आत्माने अन्य समस्त पदार्थोथी जुदो अनुभवे छे.
–आवा अनुभवमां स्व–परनुं अत्यंत भेदज्ञान थतां जरापण मोह रहेतो नथी.
द्रव्य क््यां रहे छे? –पोताना गुण–पर्यायमां ज रहे छे.