ते सर्वज्ञनुं अस्तित्व जेने न भास्युं तेने तो (ते महाविदेहमां होय तोपण) सर्वज्ञनो
विरह ज छे. एक वस्तु घरमां पडी होय, पण जेने तेनी खबर नथी तेने तो तेनो विरह
छे; अने घरमां रहेली वस्तुनी जेने खबर छे तेने तो पोते गमे त्यां बेठो होय तोपण ते
वस्तुनो सद्भाव ज छे, विरह नथी.
दर्शनमोहनो नाश करीने सम्यग्दर्शन नहि पामे–तो पछी क्यारे पामीश? संसार–
दुःखथी छूटवानो अत्यारे ज उत्तम अवसर छे. मोहने छेदनारो तीक्ष्ण असिधार जेवो
वीतरागमार्गनो उपदेश झीलीने, स्व–परनी अत्यंत भिन्नता नक्की करीने तुं
स्वसन्मुख था. चैतन्यनुं स्वरूप जाणतांवेंत उपयोग तेमां सन्मुख थईने एकाग्र थयो
ते ज मोहने छेदवा माटे तीक्ष्ण तलवारनो प्रहार छे. समयसारमां तेने ‘प्रज्ञाछीणी’
कही छे, अहीं ‘तीखी तलवार’ कही छे.
वाणी झीलवी ते तो शूरवीरोनां काम छे.–‘हरिनो मारग छे शूरानो; नहीं कायरनुं काम.’
पण तेनाथी भिन्न चैतन्यस्वरूप हुं छुं–एम अंतरना स्वभाव तरफ तेनी बुद्धि ढळे छे.
बधुं माराथी पर छे;–आम स्व–परने सम्यक्पणे भिन्न जाणनार जीवने मोहनो क्षय
थई जाय छे. जिनवाणीनो पण ए ज उपदेश छे. तेथी जेणे स्व–परनुं भेदज्ञान करीने
मोहनो नाश कर्यो तेणे ज जिनवाणीनो साचो अभ्यास कर्यो छे.