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ज्ञान ने सुखरूपे स्वयमेव थाय छे; तेथी आत्मा पोते स्वभावथी ज ज्ञान ने सुख छे,
तेमां बीजा कोई बाह्यविषयो कांई ज करता नथी, अकिंचित्कर छे.
चेतना शक्तिवाळो आत्मा पोते पोताना स्वभावमां ज रहीने निरालंबीपणे महान
दिव्यचेतनारूपे परिणमतो होवाथी आत्मा पोते देव छे.
नीरालंबी मारो ज्ञान ने सुख स्वभाव छे–एम लक्षमां लेतां ज जीवनो उपयोग
अतीन्द्रिय थईने तेनी पर्याय ज्ञान ने सुखरूपे खीली जाय छे...कोई अपूर्व, संसारमां
शांति आवी, मारो आत्मा ज आवी शांतिस्वरूप छे, एम आनंदनो अगाधसमुद्र तेने
प्रतीतमां–ज्ञानमां–अनुभूतिमां आवी जाय छे; पोतानुं परम ईष्ट एवुं सुख तेने प्राप्त
थाय छे, ने अनिष्ट एवुं दुःख दूर थाय छे.
ज्योतिषनामकर्मने लीधे स्वभावथी ज ते आकाशमां नीरालंबी, उष्णता ने प्रकाशवाळो
देव छे. तेम सुख ने ज्ञान जेनो स्वभाव छे एवी दिव्य शक्तिवाळा आत्माने,
अतीन्द्रिय ज्ञान–आनंदरूप परिणमवा माटे राग–पुण्य के ईन्द्रियविषयोनी पराधीनता
नथी, ते बधायनी अपेक्षा वगर स्वभावथी पोते ज ज्ञान–सुख ने देव छे. –सुख ने
ज्ञान–आनंदमय सहज स्वभाव ते ज ईष्ट वहालामां वहालो छे, बीजुं कांई तेने ईष्ट नथी.
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सुख छे.