Atmadharma magazine - Ank 373
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २५०१ आत्मधर्म : ३ :
के सुखमां बीजा कोईनी अपेक्षा नथी. सामान्यज्ञान ने सुखस्वभाव छे ते पोते विशेष
ज्ञान ने सुखरूपे स्वयमेव थाय छे; तेथी आत्मा पोते स्वभावथी ज ज्ञान ने सुख छे,
तेमां बीजा कोई बाह्यविषयो कांई ज करता नथी, अकिंचित्कर छे.
जेम आकाशमां सूर्य निरालंबीपणे ज्योतिष–देव छे, ते स्वयं उष्ण अने
प्रकाशरूप छे; प्रकाश माटे के उष्णता माटे तेने बीजा कोईनी जरूर रहेती नथी; तेम दिव्य
चेतना शक्तिवाळो आत्मा पोते पोताना स्वभावमां ज रहीने निरालंबीपणे महान
अतीन्द्रिय ज्ञान अने सुखरूपे परिणमे छे, ते पोते ज ज्ञान अने सुख छे; आवी
दिव्यचेतनारूपे परिणमतो होवाथी आत्मा पोते देव छे.
जेम सिद्धभगवंतो पूर्ण अतीन्द्रिय ज्ञान–आनंदरूपे परिणमनारा दिव्य
सामर्थ्यवाळा देव छे, तेम बधाय आत्मानो स्वभाव पण एवो ज छे. –आहा! आवो
नीरालंबी मारो ज्ञान ने सुख स्वभाव छे–एम लक्षमां लेतां ज जीवनो उपयोग
अतीन्द्रिय थईने तेनी पर्याय ज्ञान ने सुखरूपे खीली जाय छे...कोई अपूर्व, संसारमां
पूर्वे कदी नहि अनुभवायेली चैतन्यशांति तेने वेदनमां आवे छे. –मारामांथी ज आ
शांति आवी, मारो आत्मा ज आवी शांतिस्वरूप छे, एम आनंदनो अगाधसमुद्र तेने
प्रतीतमां–ज्ञानमां–अनुभूतिमां आवी जाय छे; पोतानुं परम ईष्ट एवुं सुख तेने प्राप्त
थाय छे, ने अनिष्ट एवुं दुःख दूर थाय छे.
–आ छे महावीरप्रभुनो ईष्ट उपदेश! महावीर भगवाने कहेलुं वस्तुस्वरूप
समजे तेने आवा ईष्टनी प्राप्ति जरूर थाय ज.
जेम सूर्यने आकाशमां रहेवा माटे कोई थांभलाना टेकानी जरूर पडती नथी,
तेने उष्णता माटे के प्रकाश माटे कोई कोलसा के तेल वगेरे बळतणनी जरूर नथी पडती.
ज्योतिषनामकर्मने लीधे स्वभावथी ज ते आकाशमां नीरालंबी, उष्णता ने प्रकाशवाळो
देव छे. तेम सुख ने ज्ञान जेनो स्वभाव छे एवी दिव्य शक्तिवाळा आत्माने,
अतीन्द्रिय ज्ञान–आनंदरूप परिणमवा माटे राग–पुण्य के ईन्द्रियविषयोनी पराधीनता
नथी, ते बधायनी अपेक्षा वगर स्वभावथी पोते ज ज्ञान–सुख ने देव छे. –सुख ने
ज्ञान आत्मानो स्वभाव ज छे. ते स्वभावनी प्राप्ति ते ईष्ट छे. धर्मीने पोतानो आवो
ज्ञान–आनंदमय सहज स्वभाव ते ज ईष्ट वहालामां वहालो छे, बीजुं कांई तेने ईष्ट नथी.
*
मारो अतीन्द्रियस्वभाव ज मने अनुकूळ ने ईष्ट छे, तेना अवलंबने ज मने
सुख छे.