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पराधीनता होवाथी मने प्रतिकूळ छे, ते ईष्ट नथी, पण अनिष्ट छे, दुःख छे.
जाय छे.
आवुं ईंद्रियातीत सुख, ते आत्मानो स्वभाव ज छे–एम जाणतां मुमुक्षु भव्य आत्मा
प्रसन्नताथी तेनो स्वीकार करे छे, एटले ईंद्रियविषयोमांथी (–ने तेना कारणरूप पुण्य
स्वभावना आनंदना वेदनसहित सम्यग्दर्शन थाय छे.
अमारो पूर्ण ज्ञानानंदथी भरेलो आत्मस्वभाव अमने प्रतीतिमां आवी जाय छे,
मोक्षसुखनो नमुनो स्वादमां आवी जाय छे....ने ईष्टप्राप्तिना महा आनंदपूर्वक अमे
आपने नमस्कार करीने आपना मंगलमार्गमां आवीए छीए.
धीर, वीर, द्रढ ब्रह्मचारी श्री जंबुकुमार ज्यारे वैराग्यथी दीक्षा
जंबुकुमार कहे छे के हे माता! तुं जलदी शोकने छोड....कायरताने छोड.
आ संसारनी बधी अवस्था क्षणभंगुर छे एम तुं चिंतन कर. हे माता!
आ संसारमां में ईन्द्रियसुखो घणीवार भोगव्या पण तेनाथी तृप्ति न
मळी; एवा अतृप्तिकारी विषयोथी हवे बस थाओ. हवे तो अमे
अविनाशी चैतन्यपदने ज साधशुं.