Atmadharma magazine - Ank 374
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २५०१ आत्मधर्म : ९ :
श्री महावीर–शासनमां
* अनेकान्तना अपूर्व चमकारा *
(समयसार स्याद्वाद अधिकारना १४ कळशना प्रवचनमांथी)
स्वतत्त्वना द्रव्य–गुण–पर्यायनी एकतारूप, अने
स्व–परना भेदज्ञानरूप अनेकान्त, वीतरागी वीरमार्गमां ज छे.
आ ज्ञायकस्वभावी आत्मानुं अस्तित्व पोताना द्रव्य–पर्यायरूप अनेकान्त–
स्वभावथी छे; अन्यवडे आनुं अस्तित्व नथी; अन्यना अस्तित्वथी आनुं अस्तित्व
भिन्न छे.
अहो, पोताना आवा स्वरूप–अस्तित्वनुं जेने वेदन थयुं ते जीव पोताना अनंत
स्वभावोथी पोताने परिपूर्ण जाणे छे, एटले तेनी सन्मुख थईने तेने ज ते भावे छे,–
पोते पोताथी ज तृप्त थई जाय छे.–आ महावीरमार्गना अनेकान्तनो चमत्कार छे.
पोताना शुद्ध द्रव्य–गुण–पर्यायरूप आत्मा ते स्वज्ञेय छे. पोतामां ज परिपूर्ण
एवा आ स्वज्ञेयने जाणतां आत्मा पोते पोताथी ज अत्यंत तृप्त–सुखी थई जाय छे.
स्वज्ञेयने जाणवानुं आ फळ छे.
‘एकत्व–विभक्त’ आत्मा कहो के स्वज्ञेय कहो, तेनुं स्वरूप बतावीने महावीर
शासनमां कुंदकुंदस्वामीए भव्यजीवो उपर मोटो उपकार कर्यो छे. तेमना प्रतापे
महावीरप्रभुनुं शासन आजे पण जयवंत वर्ते छे. तेने पामीने स्वज्ञेयने जाणीने
पोतानुं कल्याण करवानो आ अवसर छे. तेमांय अत्यारे तो महावीर भगवानना
निर्वाणनो २५०० वर्षीय महोत्सव चाले छे. भगवाने कहेलो मार्ग समजवो ते ज
तेमनो साचो महोत्सव छे. भगवाने कहेला मार्गने ओळखे पण नहि तो एकली
बहारनी धूमधामथी आत्माने शो लाभ? (समज्या वण उपकार शो?)
वीरनो मार्ग स्वाधीन छे....देवो पण तेमां सहाय करी शकता नथी
आत्माना मोक्षनो मार्ग, आत्मा पोते एकलो ज पोतामांथी साधे छे; ते मार्गने
साधवामां स्वर्गना देवो पण सहाय करी शकता नथी, त्यां बीजानुं शुं काम छे? धर्मी