आत्मानी अनुभूतिवडे हुं साधी ज रह्यो छुं, देव आवीने तेमां शुं करशे? मारा स्वाधीन
मोक्षमार्गमां नथी मारे कोईनी सहायनी जरूर, के नथी मने कोई विघ्न करनार.–आवी
स्वाधीनताने नहि जाणनारा, रागना ने विषयोना भीखारी जीवो मोक्षने साधी शकता
नथी. शूरवीरने वळी सहाय शी? तेम स्वाधीन एवो मोक्षमार्ग, तेमां चालनारा वीर
जीवोने अन्य कोईना आश्रयनी बुद्धि होती नथी. अहो, आ तो एकत्वनो मार्ग छे,
स्वाधीनताथी शोभतो वीरोनो मार्ग छे.
स्वभावमां अभेद थईने परिणमी, तेथी ते पर्याय आत्मानी ज छे अथवा
अभेदपणे ते आत्मा ज छे–एम कह्युं;–पछी भले ते पर्यायमां स्व–परने
जाणवानुं सामर्थ्य होवाथी परने पण ते जाणे. आत्मामां अभेद थयेली ते
पर्याय स्व–परप्रकाशकस्वभावपणे परिणमे छे, ते तो तेनो स्वभाव ज छे.
आवा आत्माने जे स्वज्ञेय बनावे छे ते स्वसमय छे.
अस्तित्वने भूलीने एकला परज्ञेयने जाणवा जाय छे, ते पर साथे एकत्वपणुं
मानीने अज्ञानरूप परिणमे छे, एटले तेने खरेखर ज्ञानस्वभावनी पर्याय
कहेता नथी. पर साथे एकत्व मान्युं माटे तेने पर पर्याय ज कही दीधी; ने एवी
पर्यायमां जे स्थित छे ते जीवने परसमयमां स्थित कह्यो.
पोताना आत्मा होवो जोईए. स्वने भूलीने एकला परने जे लक्ष्य बनावे छे ते
ज्ञान साचुं नथी. स्वने जाणे ते ज्ञान स्वमां तन्मय थईने अनंतगुणना स्वादने
एकसाथे अनुभवे छे, ते ज्ञान मोक्षनुं साधक छे.