Atmadharma magazine - Ank 374
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : मागशर : २५०१
पर्याय वगरनो आत्मा नथी
ज्ञानपर्याय के जे शुद्ध छे, ने राग–द्वेष वगर पदार्थोने जाणवानो जेनो
स्वभाव छे,–ते पर्याय वगरनो एकान्त ध्रुव–कूटस्थ आत्मा जे अनुभववा मांगे
छे–ते एकान्तवादी–मिथ्याद्रष्टि छे. आत्मामां अनित्यता अमारे नथी जोईती,
एकलुं ध्रुव ज जोईए छे–एम मानीने जे पर्यायनो निषेध करे छे तेने
ज्ञानवस्तुनो ज निषेध थई जाय छे, एटले के ज्ञानस्वरूप आत्मा तेना
अनुभवमां आवतो नथी.
* आचार्यदेव अनेकान्त वडे तेने साचुं स्वरूप समजावे छे के भाई! पर्याय पण
तारो स्वभाव ज छे, ते कांई बहारनी उपाधि नथी. जेम नित्यता वस्तुनो
स्वभाव छे तेम अनित्यता पण वस्तुनो स्वभाव छे.–बंने स्वभाववाळी
वस्तुने जाण, तो ज तने साचो अनुभव थशे.
वीरमार्गमां अनेकान्तनो सिंहनाद
अनेकान्त ए तो वीरमार्गनो सिंहनाद छे. महावीर भगवाननुं लंछन
सिंह छे; सिंह ते शूरवीरतानो सूचक छे. तेम महावीरमार्गमां जिनवचनरूप
सिंहनाद सांभळीने मुमुक्षुजीव वीतरागी–वीरतावडे मोक्षमार्गने साधे छे.
सिंहगर्जना थाय त्यां हरणीयां ऊभा न रहे, तेम ज्यां अनेकान्तनो सिंहनाद थाय त्यां
एकांत द्रव्य के एकांतपर्याय वगेरे मिथ्यावादरूपी हरणीयां ऊभा रही शकता नथी.
अनेकान्तसूर्यनो प्रकाश द्रव्य–पर्यायरूप वस्तुने एकसाथे प्रकाशे छे.
मोक्षनो सत्य महोत्सव....एटले मोक्षमार्ग
अनेकान्तमय शुद्ध जीवस्वरूपनो अनुभव ते ज मोक्षनो मार्ग छे, बीजो मार्ग
नथी. शुद्धजीवनी अनुभूतिमां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र त्रणे गर्भित छे, ते–रूपे
परिणमेलो जीव सिद्धपदने पामे छे. महावीर भगवान आवो मार्ग बतावीने, आ ज
मार्गे सिद्धपदने पाम्या, तेने आ दीवाळीए अढीहजार वर्ष पूरा थया; तेनो उत्सव
अत्यारे आखा भारतमां चाली रह्यो छे.
आपणे तो आवा मोक्षमार्गनी समजण
करीने तेवो मार्ग पोतामां प्रगट करवो ते सत्य महोत्सव छे,–के जेनुं फळ
मोक्ष छे.