Atmadharma magazine - Ank 374
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २५०१ आत्मधर्म : १९ :
द्रव्य जुदुं ने पर्याय जुदी–एम मानवुं ते पण भेदबुद्धि छे. द्रव्य–पर्यायना भेदथी
पार जे कोई परम सत् तत्त्व छे ते सर्वोपरि तत्त्वना स्वीकारमां ज पर्यायबुद्धि छूटी
जाय छे.
‘द्रव्यनी पर्याय छे’ एम जाणवानुं फळ स्वसन्मुख परिणमन छे.
हवे जीव!
वीतरागी संतना दरबारमां तारे बेसवुं होय तो तुं तारा
परमात्मस्वरूपने संभाळीने सम्यग्द्रष्टि था. संतोना वीतरागी दरबारमां
बेसवानो अधिकारी सम्यग्द्रष्टिने ज छे.
वीतरागमार्ग
अहा, वीतरागमार्ग तो वीतराग ज छे. आत्मानो जे आनंद छे ते
वीतरागमार्गमां ज छे. जय हो वीतरागमार्गनो....जय हो जैनधर्मनो.
शांत....शांत
आ जगतमां आ चैतन्यस्वरूप आत्मा पोते एवो शांत छे–एवो
महान छे–के कोईपण परिस्थितिनी पाछळ खेंचाईने अशांत (खेदखिन्न)
थया वगर ते पोतानी शांतिना मधुरा वेदनमां रही शके छे.
वाह! चैतन्य–शांतिनुं वेदन केवुं मधुर छे!
देहबुद्धिजन आत्मने करे देहसंयुक्त
आत्मबुद्धिजन आत्मने तनथी करे विमुक्त.