Atmadharma magazine - Ank 374
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : मागशर : २५०१
जिनपरमेश्वर महावीरे कहेली
अनेकान्तमय उत्तम वस्तुव्यवस्था
जे पर्यायमूढ छे ते परसमय छे. ते जीव–पुद्गलना संयोगरूप
अशुद्धपर्यायनो ज आश्रय करतो थको परसमयरूप थईने
संसारमां रखडे छे. अने धर्मी अविचलित चेतनाविलासरूप
आत्मव्यवहारने अंगीकार करीने मोक्षमार्गने साधे छे.
पर्यायमूढने परसमय कह्यो–माटे पर्यायने आत्मानी मानवी ज नहि–ए वात
साची छे?–ना; पर्यायने परसमय नथी कही, पण पर्यायमां ज जे मूढ छे तेने परसमय
कहेल छे. पर्याय पोते परसमय नथी, पर्यायस्वरूप ने गुणस्वरूप तो वस्तु पोते ज छे.
वस्तु पोताना द्रव्य–गुण–पर्यायथी जुदी नथी. गुणस्वरूप जे द्रव्य छे ते ज पर्यायरूप
परिणमे छे, ने तेनाथी ते अभिन्न छे.
पर्यायमूढ ते परसमय कह्यो, तेनो अर्थ एम नथी के पर्यायने आत्मानी मानवी
ज नहीं. पर्यायो ने गुणोस्वरूप तो आत्मा छे ज; पण गुण–पर्यायस्वरूप शुद्ध
चैतन्यवस्तुने न जाणतां, एकली असमानजातीय पर्यायने ज जे आत्मानुं स्वरूप मानी
ल्ये छे, ए रीते पोताने देवादि पर्यायरूपे के रागादि अशुद्धभावरूपे ज जे अनुभवे छे, ते
जीव पर्यायमां ज मूढ होवाथी (ने शुद्धद्रव्य–गुणने भूली गयो होवाथी) मूढ–
मिथ्याद्रष्टि छे. शुद्ध गुण–पर्यायना पिंडरूप जे साचुं आत्मतत्त्व छे तेने ते प्राप्त करी
शकतो नथी. अज्ञानी अशुद्ध पर्यायरूपे परिणमतो थको, तेटलो ज पोताने अनुभवे छे.
जो शुद्धचेतनापर्यायने अनुभवे तो–तो पोताना शुद्ध द्रव्य–गुणने पण ओळखी ज ल्ये,
केमके शुद्ध चैतन्यरूप गुण–पर्यायथी अभेदवस्तु ते ज आत्मा छे.–अने ए ज
जिनपरमेश्वरे कहेली उत्तम वस्तुव्यवस्था छे, आ सिवाय बीजी कोई व्यवस्था भली नथी.
चेतनपर्याय छे ते आत्मानी ज छे, ने आत्माना द्रव्य–गुणोथी ज ते थयेली छे.
ते पर्यायने आत्माना द्रव्य–गुणथी थयेल न मानतां परथी थयेली जे माने ते पण
पर्यायबुद्धि छे. मारी पर्याय मारा द्रव्य–गुणथी थाय छे–एम सम्यक्प्रकारे जे जाणे