: मागशर : २५०१ आत्मधर्म : २१ :
छे तेने तो पर्याय द्रव्य–गुणमां अभेद थईने शुद्धतारूप परिणमेली छे. अशुद्धपर्यायो ते
परसमयो छे; ने आत्माना स्वभावआश्रित थयेली शुद्धचेतनापर्याय ते तो अविचलित
चेतना विलासरूप आत्मव्यवहार छे, ने तेने तो धर्मी अंगीकार करे छे. तेमां पर्याय–
बुद्धि नथी, पण स्वद्रव्यना संगे स्वसमयरूप परिणमन छे–मोक्षमार्ग छे.
ज्ञेय एटले स्व अने पर बधाय तत्त्वो; तेमां पोतानो शुद्ध द्रव्य–गुण–पर्याय–
स्वरूप आत्मा ते स्वज्ञेय छे; तेने जाणीने श्रद्धा करतां सम्यग्दर्शन थाय छे. हुं ज्ञायक–
स्वभावी आत्मा छुं; मारुं अस्तित्व पोताना द्रव्य–गुण–पर्यायरूप स्वज्ञेयमां पूरुं थाय
छे; अन्य वडे मारुं अस्तित्व नथी; अन्यना अस्तित्वथी तद्न भिन्न मारुं अस्तित्व छे.
अहो, जेने पोताना आवा स्वरूप–अस्तित्वनुं वेदन थयुं ते जीव पोताना अनंत
स्वभावोथी पोताने परिपूर्ण देखे छे, एटले स्वसन्मुख थईने तेने ज ते भावे छे; पोते
पोताथी ज तृप्त–सुखी थई जाय छे. आ स्वज्ञेयने जाणवानुं फळ छे.
बे व्यवहार: एक मोक्षनुं कारण; एक संसारनुं कारण
चैतन्यमय शुद्ध द्रव्य–गुण–पर्यायनी अभेदतारूप स्वज्ञेयनी अनुभूतिमां तो
राग पण परज्ञेयपणे बहार रही जाय छे; त्यां तो आत्मा पोतानी अविचलित चेतना
साथे आनंदमय विलासमां वर्ते छे;–आ ज धर्मीनो व्यवहार छे, ने आवो व्यवहार ते
मोक्षनुं कारण छे. शुद्धचेतनारूप वर्तन कहो, मोक्षनुं साधन कहो, आत्मानो शुद्ध व्यवहार
कहो के धर्मीजीवनी क्रिया कहो.–आवो शुद्ध आत्मव्यवहार अज्ञानी जीवने होतो नथी;
पोताना निश्चयस्वभावना भानसहित धर्मीने ज आवो व्यवहार होय छे.–आवो
व्यवहार धर्मीए अंगीकार करवा योग्य छे. पण ‘हुं मनुष्य छुं, हुं देव छुं, हुं रागी–द्वेषी
छुं’–एवी स्व–परनी एकत्वबुद्धिपूर्वकनो जे मनुष्यत्वादि वर्तनरूप व्यवहार–ते तो
अज्ञानीने वहालो छे, धर्मी जीवो तेवा व्यवहारने अंगीकार करता नथी; अज्ञानीनो ते
व्यवहार संसारनुं कारण छे. धर्मात्माने शुद्धचेतनाविलासरूप जे शुद्धआत्मव्यवहार छे
(–जेमां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र समाय छे) ते स्वज्ञेयरूप छे ने ते मोक्षनुं कारण
होवाथी अंगीकार करवा योग्य छे.
‘एकत्व–विभक्त’ आत्मा कहो के ‘स्वज्ञेय’ कहो,–महावीरशासनमां तेनुं स्वरूप
बतावीने कुंदकुंदस्वामीए भव्यजीवो उपर मोटो उपकार कर्यो छे. तेमना प्रतापे
महावीरप्रभुनुं शासन आजे पण जयवंत वर्ती रह्युं छे, तेने पामीने स्व–परज्ञेयोने
जाणीने, पोतानुं कल्याण करवानो आ अवसर छे. तेमांय अत्यारे तो भगवानना
निर्वाणना २५०० वर्षनो महोत्सव चाले छे.
जय महवर